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हे बीजापुर, कभी देखा नहीं तुम्हें

हे बीजापुर, कभी देखा नहीं तुम्हें, पर सुना है, तुम बहुत सुंदर हो, तुम बहुत अल्हड़ हो,

हे बीजापुर, कभी देखा नहीं तुम्हें, पर सुना है , हरा भरा बदन है तुम्हारा,
सुना है, खनिज से भरा यौवन तुम्हारा।

हे बीजापुर, कभी देखा नहीं तुम्हें।
क्या तुम एक लड़की हो ?
की कैसे ललचाई नज़रें,
पहुंच जाती है तुम्हारे सीने तक,
की कैसे वहशी हाथ पहुंच जाते हैं ,
तुम्हारे आंचल तक ।

हे बीजापुर, कभी देखा नहीं तुम्हें,
क्या तुम एक लड़की हो, कि बचा नहीं सकती तुम अपना वर्चस्व अपना अस्तित्व।

हे बीजापुर, तुम्हारे चाहने वाले छुपा लेना चाहते हैं,

तुम्हें लालची नजरों से, वहशी हाथों से,
क्या तुम उनकी बेटी हो ?
हे बीजापुर रक्षा करते हैं, जो तुम्हारी अस्मत की दिन रात।
क्या तुम उनकी बहन हो ?
हे बीजापुर, क्यों आ रही है आवाजें?
क्या तुम चीख़ रही हो?

क्या मारे जा रहे हैं तुम्हारे मां- बाप ?
क्या मारे जा रहे हैं तुम्हारे भाई ?

हे बीजापुर, क्यों हो रहा है आज मन उदास?
क्यों आंखें रह रहकर भर रही हैं।

जैसे लूट रही है निर्भया कोई आज फ़िर,

नहीं देखा था , कभी निर्भया को भी,
पर उसकी पीड़ा का एहसास था,

हे बीजापुर, मैंने तुम्हें देखा नहीं , पर सुना है,

तुम बहुत सुंदर हो, अल्हड़ हो , जैसे कोई लड़की, जैसे कोई निर्भया।

(जाँबाज़ पत्रकारों, सैनिकों और बीजापुर के चाहने वालों को समर्पित)

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