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किताब समीक्षा (Jeeteshwari Sahu) ‘यारेख़’ प्रेमपत्रों का संकलन संपादन : अनामिका अनु

तुम कौन सी पाटी पढ़े हो लला ?

इन दिनों हिंदी जगत में 36 प्रेम पत्रों की किताब ‘यारेख़’ की खूब चर्चा है। जब किसी चीज की खूब चर्चा होती है तो स्वाभाविक है उसे पढ़ने का मन भी होता ही है। इसलिए मैंने भी इस 36 प्रेम पत्रों वाली किताब ‘यारेख़’ जिसका संपादन अनामिका अनु ने किया है उसका ऑर्डर कर दिया।

इसमें मुझे अपने दोनों प्रिय कवि सविता सिंह और पंकज सिंह के पत्र भी शामिल होने की जानकारी थी, इसलिए मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई थी। अभी कुछ ही दिनों पहले यह किताब मुझे मिली है।

अब जब किताब मिल गई तब सबसे पहले मैंने इस किताब की संपादक अनामिका अनु द्वारा लिखित भूमिका जिसका नाम उन्होंने ‘संपादकीय’ दिया है तथा जिसे प्रेम पत्र की शैली में लिखा है उसे पढ़ना जरूरी समझा। अनामिका अनु ने अपने संपादकीय में जो लिखा है उसे पढ़कर मेरा चौकना स्वाभाविक था मुझे लगा कि मैं कल्पना के आकाश से गिरकर किसी बंजर जमीन पर पड़ी हुई हूं।

अनामिका अनु ने यह लिखकर ‘इस संकलन के ज्यादातर पत्र काल्पनिक हैं। वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह और प्रतिष्ठित कवि पंकज सिंह के पत्र वास्तविक हैं। ‘

यह पढ़कर मैं हतप्रभ हो गई कि जिसको मैं वास्तविक प्रेम पत्रों का संकलन मान रही थी वह केवल दिमागी फितूर निकला इस किताब में सविता सिंह और पंकज सिंह को छोड़कर किसी भी के प्रेम पत्र वास्तविक प्रेम पत्र नहीं है जो दिल की गहराइयों से लिखे जाते हैं जिसमें न जाने कितने खून और आंसू के कतरे शामिल होते हैं।
कितनी रातों की नींद और कितनी शामों की बेचैनियां शामिल होती है। कितनी तन्हाइयां और कितनी सितारों के साथ गुफ्तगू और जुगनूओं के साथ देर तक जलते-बुझते रहना यह कोई प्रेम करने वाला ही समझ सकता है।

पर क्या आप किसी के नकली आंसू देखकर प्रभावित हो सकते हैं? या किसी के आंखों में नकली प्रेम देखकर आपको यह नहीं लगता कि यह केवल और केवल अभिनय कर रहा है क्योंकि उसकी आंखों में कहीं प्रेम की गहराई दिख ही नहीं रही है। केवल और केवल वहां चारों ओर मरुस्थल दिखाई दे रहा है, हिलोरे मारता हुआ समुद्र का कहीं कोई अता-पता नहीं है।

क्या कोई नकली प्रेम भी कर सकता है ? और आश्चर्य तो यह कि क्या कोई नकली प्रेम पत्र भी लिख सकता है ? मुझे लगता है कि यह सब इन दिनों केवल और केवल हिंदी साहित्य में ही संभव हो सकता है।

मुझे इस किताब के सम्पादक अनामिका अनु पर कम और इसमें नकली प्रेम पत्र लिखने और छपवाने वाले बड़े-बड़े कवि और लेखक पर ज्यादा तरस आ रही है।

तो इस किताब में शामिल 36 प्रेम पत्रों में केवल पंकज सिंह और सविता सिंह के प्रेम पत्र वास्तविक है बाकी सारे पत्र काल्पनिक है। इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद इस किताब को पढ़ना तो दूर छूने तक का मन नहीं किया। बावजूद इसके मैंने पंकज सिंह और सविता सिंह के पत्र जो वास्तविक थे वह पढ़े लेकिन निरुत्साहित होकर के पढ़ा।

आप कल्पना कीजिए कि आपने किसी से प्रेम किया। वास्तविक प्रेम नहीं काल्पनिक प्रेम। इसके बाद उस कल्पना को आप लिख डालिए जैसे आपने सोच लिया कि मेरे सपनों के अमुक शहर में अमुक चीज इस तरह होगी। उसी तरह प्रेम किए बिना प्रेम को शब्दों से जाहिर करना है।

क्या मजेदार चीज है कि प्रेम को बिना जिए उसे प्रेम बना देना है।
क्या काल्पनिक प्रेम भी होता है ? क्या फूल को बिना सूंघे उसकी खुशबू की कल्पना मुनासिब है?
क्या किसी व्यक्ति से मिले बिना उस व्यक्ति को जाना जा सकता है? क्या हमारे हृदय के तार बिना किसी प्रेम भरे जादुई आहट के झंकृत हो सकते हैं?

किसी का हृदय कल्पना से रोमांचित भी तभी होता है जब उसके सामने कोई वास्तविक वही व्यक्ति हो जिससे वह प्रेम करना चाहता है। पर कल्पना कर के प्रेम तो इस पृथ्वी का कोई महान व्यक्ति ही कर सकता है।

मैं एक मनुष्य हूं और मनुष्य कल्पना में प्रेम की आहें तो कतई नहीं भर सकता। वह तभी आहें भरेगा जब उसके आस-पास उसे प्रेम की अनुभूति होगी। वास्तविक प्रेमी से मिलने की कल्पना तो हर प्रेमी या प्रेमिका करता ही है पर काल्पनिक प्रेम की कल्पना तो एक नई और हैरतअंगेज बात है।

प्रेम एक अहसास है जो सिर्फ प्रेमरत होने से ही आती है। प्रेम सजीव है उसे जिया जाता है, महसूस किया जाता है। प्रेम तो दुनिया का सबसे सुंदर अहसास है। क्या इस सुंदर अहसास की कल्पना संभव है ?

इस किताब के ज्यादातर काल्पनिक प्रेम पत्रों को लेकर मुझे सिर्फ गालिब की वह पंक्ति याद आती है जिसमें उन्होंने भी यही कहा है कि :

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे

जब इश्क पर जोर नहीं है तो इश्क किए बिना उस इश्क की कल्पना पर कैसे जोर दिया जा सकता है ?

मुझे यहां रीतिकालीन और मेरे प्रिय कवि घनानंद की याद आ रही है और मुझे लगता है कि प्रेम करना अगर सीखना हो तो घनानंद से सीखे। घनानंद ने लिखा है :

‘अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।

तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झझकें कपटी जे निसांक नहीं।

घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तें दूसरो आँक नहीं।

तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ कहौ मन लेहु पै देहु छटांक नहीं’

घनानंद ने लिखा है प्रेम में छल-कपट कुछ भी स्वीकार्य नहीं है और नकलीपन भी स्वीकार्य नहीं है। अगर प्रेम है तो 24 कैरेट सोने की तरह उज्ज्वल होना चाहिए न की पीतल में सोने की पॉलिश वाला नकली सोना।

अनामिका अनु के इस किताब को पढ़कर लगता है कि यह पीतल पर सोने की परत वाले नकली सोना है।

हमारे देश और दुनिया में लैला मजनू, हीर रांझा और रोमियो जूलियट के प्रेम की प्रतिष्ठा यूं ही नहीं है ये आज भी अमर प्रेम के प्रतीक माने और पूजे जाते हैं। इन्होंने नकली प्रेम नहीं किया और न ही इन्हें कभी नकली प्रेम पत्र लिखने की आवश्यकता महसूस हुई होगी।

अजब तो यह भी है यारों कि इस किताब के अंतिम आवरण पृष्ठ पर अनामिका अनु ने यह भी लिखा है कि ‘ क्या पता, आपको यह संकलन प्रेम करने के लिए तत्पर कर दे और इन पत्रों ( काल्पनिक पत्रों ) से प्रेरित हो आप एक नया अध्याय प्रेमपत्रों का लिखने लग जाएं क्योंकि प्रेमपत्र सिर्फ शब्द नहीं होते। ‘

संपादक के इस महान विचार के लिए पूरे हिंदी साहित्य को गदगद होकर अपनी पीठ थपथपानी चाहिए। ऐसा महान और प्रेरक संदेश केवल इस किताब की विदुषी संपादक जो प्रेम के महत्व को घनघोर रूप से जानती और पहचानती है वहीं दे सकती हैं।

जिन कवियों और लेखकों के प्रेम पत्र इस किताब में शामिल है उनके नाम –
अनामिका, अनीता भारती, अनिल कार्की, अनुज लुगुन, अनुराधा सिंह, असगर वजाहत, आकांश पारे काशिव, आलोक धन्वा, उमर तिमोल (अनुवाद : अनामिका अनु), उषाकिरण खान, के सच्चिदानंद (अनुवाद : अनामिका अनु), गीताश्री, तेजी ग्रोवर, नंद भारद्वाज, नीलेश रघुवंशी, यतीश कुमार, विभा रानी आदि।

Book Review (Jeeteshwari Sahu) Collection of ‘Yarekh’ love letters Editing Anamika Anu

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