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आँख बंद कर लेने से (कविता )

विनोद कुमार शुक्ल

by satat chhattisgarh
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By closing my eyes (poem)

अंधे की दृष्टि नहीं पाई जा सकती

जिसके टटोलने की दूरी पर है संपूर्ण

जैसे दृष्टि की दूरी पर।

अँधेरे में बड़े सवेरे एक खग्रास सूर्य उदय होता है

और अँधेरे में एक गहरा अँधेरे में एक गहरा अँधेरा फैल जाता है

चाँदनी अधिक काले धब्बे होंगे

चंद्रमा और तारों के।

टटोलकर ही जाना जा सकता है क्षितिज को

दृष्टि के भ्रम को

कि वह किस आले में रखा है

यदि वह रखा हुआ है।

कौन से अँधेरे सींके में

टँगा हुआ रखा है

कौन से नक्षत्र का अँधेरा।

आँख मूँदकर देखना

अंधे की तरह देखना नहीं है।

पेड़ की छाया में, व्यस्त सड़क के किनारे

तरह-तरह की आवाज़ों के बीच

कुर्सी बुनता हुआ एक अंधा

संसार से सबसे अधिक प्रेम करता है

वह कुछ संसार स्पर्श करता है और

बहुत संसार स्पर्श करना चाहता है।

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