माओवादी आंदोलन
भारत में माओवादी आंदोलन के वर्तमान चरण के समापन का कार्य लगभग ८०% पूरा हो गया है। इस समापन कार्य में सुरक्षा बलों की मुख्य भूमिका रही है जिनको स्थानीय लोगों का सहयोग मिला है
जैसा आप जानते हैं कि माओवादी आंदोलन का यह तीसरा दौर है। पहला चरण १९४६ से १९५१ तक चला था फिर दूसरा दौर १९६७ से १९७२ तक। अभी वाला सबसे लम्बा चलने वाला माओवादी आंदोलन है जो १९८० से शुरू हुआ था
किसी बीमार का जब ऑपरेशन होता है तो वह अक्सर चाकू छूरी से ही होता है पर ऑपरेशन के बाद रोगी फिर से स्वस्थ होकर खड़ा हो जाए इसके लिए पेनकिलर, एनेस्थीसिया, साफ़ सफ़ाई और सेवा-सुश्रुषा आदि की भी ज़रूरत होती है
छत्तीसगढ़ में १९८० से अब तक ४३ सालों में लाखों लोग माओवादी आंदोलन के कारण पीड़ित हुए हैं, कुछ विस्थापित हुए, कई मारे गए, बहुत घायल हुए, हज़ारों जेल में रहे, कुछ यौन हिंसा के शिकार हुए आदि आदि
अब इन सभी के दर्द को कम करने पर काम करने का भी समय है।एक पुलिस अधीक्षक ने बताया कि उनके अनुमान के अनुसार उनके ज़िले में ७०% से अधिक पीड़ितों का सरकार के पास कोई रिकार्ड नहीं है
अधिकतर पीड़ित विभिन्न कारणों से पुलिस थाने में एफ़आईआर कराने नहीं आए या नहीं आ सके। बग़ैर एफ़आईआर के सरकार किसी को पीड़ित नहीं मानती। अब तक कोई सर्वे नहीं हुआ है कि कितने लोग अपना घर द्वार छोड़कर दूसरी जगहों पर रहने को मजबूर हुए हैं और अब भी बेहद तकलीफदेय ज़िंदगी जी रहे हैं
इन पीड़ितों की थोड़ी और मदद करना अब समाप्ति की ओर बढ़ रहे इस ओपरेशन में पेनकिलर का काम कर सकता है।अब बस्तर के पुनर्निर्माण पर काम शुरू करने का भी समय है
बहुत से लोगों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर आत्मसमर्पण किया है पर उनमें से बहुत को सरकार ने जो पुनर्वास का वादा किया था वह अब तक पूरा नहीं मिला है। बहुत से लोग हिंसा छोड़कर फिर से हिंसा के रास्ते में नहीं जाना चाहते थे पर उन्हें नौकरी पुलिस में दी गई है
धारा ३७० के विलोपन पर अपनी राय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में जम्मू और कश्मीर में सत्य और सुलह आयोग (ट्रुथ एंड रिकोंसिलिएशन कमीशन) स्थापित करने का सुझाव दिया है. ऐसा ही कुछ यहाँ भी करने की ज़रूरत है जैसा दक्षिण अफ़्रीका जैसे देशों में भी किया गया था
बस्तर में माओवादी आंदोलन के समापन के लिए कई प्रयोग हुए हैं. अगर हम चाहते हैं कि इस इलाक़े में माओवाद की समस्या फिर से उठकर ना खड़ी हो तो उनमें से एक इंदिरा गांधी के बस्तर डेवलपमेंट प्लान पर भी फिर से नज़र डालने की ज़रूरत है जो उन्होंने उनकी हत्या के ठीक पहले १९८४ में बनवाया था पर किसी ने उनके बाद उस पर ध्यान नहीं दिया
बस्तर के कांकेर जेल में नक्सल क़ैदियों को काष्ठ शिल्प में ट्रेनिंग जैसे सफल प्रयोग हुए हैं. इन तरह के प्रयोगों को और आगे बढ़ाने और जेल से बाहर आने के बाद भी उनसे लगातार सम्पर्क में रहने की ज़रूरत है जो पुलिस अभियान के साथ साथ अगर चले तो ये ओपरेशन के दौरान एनेस्थीसिया की तरह काम करेंगे
विशेष पिछड़ी जनजातियों
विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए हाल में शुरू की गई प्रधानमंत्री जनमन योजना का उपयोग भी इस कार्य के लिए किया जाना चाहिए. माओवादियों का मुख्यालय आज भी अबूझमाड़ क्षेत्र है जो प्रदेश की एक प्रमुख विशेष पिछड़ी जनजाति ( पीवीटीजी) अबूझमाडिया का निवास क्षेत्र है
छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों में वन अधिकार क़ानून के सामान्य प्रावधानों का बढ़िया उपयोग किया जा रहा है पर इस समस्या के समाधान के लिए वन अधिकार क़ानून के एक विशेष प्रावधान हैबिटेट राइट या पर्यावास के अधिकार का उपयोग अबूझमाड़िया जैसे विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए अब तक नहीं किया गया है
वन अधिकार क़ानून के एक और विशेष प्रावधान वैकल्पिक भूमि का अधिकार ( धारा 3.1.m) का उपयोग छत्तीसगढ़ से हिंसा के कारण विस्थापित होकर आँध्रप्रदेश और तेलंगाना भाग कर गए जनजातियों के लिए किए जाने की ज़रूरत है जिसके लिए छत्तीसगढ़ राज्य को पहल करने की ज़रूरत है। इसके लिए केंद्र सरकार की भी मदद की ज़रूरत होगी
केंद्र ने कश्मीर और उत्तर पूर्व से हिंसा के कारण अन्य राज्यों में विस्थापितों के लिए विभिन्न पुनर्वास योजनाएँ बनाई हैं वैसी ही योजनाएँ छत्तीसगढ़ से हिंसा के कारण विस्थापितों के लिए भी बनाए जाने की आज ज़रूरत है। ये सब सेवा सुश्रुषा के कार्य बस्तर पुनर्निर्माण आयोग के अंतर्गत किये जा सकते हैं
नए वित्त मंत्री अगर इस आयोग के लिए अगले बजट में कुछ धन का प्रावधान करते हैं तो उसके ही अंतर्गत जनजातियों की भाषा, संस्कृति और धर्म आदि पर भी काम किया जा सकता है। अधिकतर आदिवासी माओवादी नेता जंगल के अधिकार के साथ इन सब सांस्कृतिक कार्यों में हुई अवहेलना को अपने लड़ने का कारण बताते हैं
पिछले वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में राजधानी नवा रायपुर में १२५ करोड़ रू के शुरुआती प्रावधान से गांधी के सेवाग्राम जैसे आश्रम की बात कही थी। गांधी का यह नया आश्रम बस्तर पुनर्निर्माण का केंद्र भी हो सकता है।
बस्तर के हर गाँव में आज गौठान है ।गाय चूँकि आदिवासी संस्कृति का हिस्सा नहीं है इसलिए बस्तर के अक्सर गौठान में कोई गाय दिखाई नहीं देती। नए बजट में बस्तर के गौठानों को माओवादी आंदोलन के दौरान उस गाँव से मारे गए लोगों की याद में शांति वन में बदलने का प्रस्ताव रखा जा सकता है
इन शांति वनों में उस इलाक़े के सभी जड़ी बूटियों का संरक्षण कर उन्हें स्थानीय वैद्यों की मदद से स्थानीय युवाओं के रोज़गार के लिए प्रोसेसिंग यूनिट की तरह भी विकसित किया जा सकता है। स्थानीय गोंड जनजाति के लोग अपने गोत्र के पवित्र पेड़ को सुरक्षित रखने के लिए इन शांति वनों का उपयोग करें तो ये “सेक्रेड ग्रोव” (पवित्र उपवन) की तरह भी विकसित हो सकते हैं
मिलिटरी की भाषा में इसे साइकोलोजिकल ऑपरेशन (साई ऑप) कहते हैं। बस्तर पुनर्निर्माण आयोग यह संदेश देगा कि प्रदेश अब माओवादी समस्या के दौर से आगे बढ़ कर भविष्य का सोच रहा है