विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस की हार और बीजेपी को जीत को लेकर बहुत सारे लोगों ने सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया को लेकर हम यह एक लेख आपको दे रहे हैं,।।
एंटी इंकमबैंसी
एंटी इंकमबैंसी इतनी आसानी से समझ आ जाती तो फिर राजनीतिक रणनीतिकार किस लिए होते हैं? अक्सर अपने दाएं-बाएं से ज्यादा दूर देख न सकने वाले नेता सत्ता से इसलिए ही बड़े बेआबरू होकर बेदखल होते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में छत्तीसगढ़ का जनादेश राजस्थान और मध्यप्रदेश से अलग है।
पिछड़ा वर्ग को वोट बैंक में बदलने की इंजीनियरिंग सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में हुई थी। इतना कि राहुल गांधी भी प्रभाव में आ गए थे। छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर मप्र और राजस्थान सी महत्ता नहीं मिलती और उसे इन दोनों राज्यों के मुकाबले नया और पिछड़ा मान लिया गया है किंतु छत्तीसगढ़ियों ने बता दिया वे यूपी और बिहार की तरह जातिवाद की राजनीति को फिलहाल तो सत्ता प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग नहीं बनने देंगे।
ओबीसी पॉलिटिक्स में लगे भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ में कमोबेश बिहार की लालू प्रसाद यादव नुमा वोटबंदी में लगे हुए थे। उन्होंने मंच पर खड़े होकर जातिगत आरक्षण पर उग्र बातें की थीं और इसी रौ में सामान्य वर्ग को उसकी संख्या के आधार पर अवसर मिलने को भी ज्यादा बता दिया था।
वे अनुभवी होते हुए भी शायद अहंकार में चिंतन न कर पाए अथवा भुलावे में रह गए कि छत्तीसगढ़ को राजनीतिक स्तर पर बिहार बनाया जा सकता है। राहुल गांधी उनके जातिगत तौर-तरीकों से प्रभावित रहे, यह मैं दावे से कह सकता हूं। राहुल ने बीच में ट्वीट कर जितनी संख्या उतना हक जैसा नारा दिया था (जिसके विरोध में भी मैंने एक पोस्ट लिखी थी)। यह कर्नाटक की जीत से अधिक भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ में अतिप्रचारित सियासी सोच और कथित सफलता से एन्फ्लुएंस थी।
भूपेश और राहुल फौरी कामयाबी में मतदाताओं की मानसिकता नहीं पकड़ पाए कि भाजपा का हिंदुओं में प्रभाव कम करने के लिए हिंदू आबादी को जातियों में तोड़ने की आवश्यकता नहीं है। भूपेश की सफलता के असर में कांग्रेस ने यह करने का प्रयास किया और मुझे लगता है दक्षिण भारत का रूख कर चुकी कांग्रेस 2024 में भी यही स्ट्रैटजी अपनाएगी। कांग्रेस ने इस रणनीति की वजह से सामान्य और ख़ासकर उसे स्वच्छ राजनीति करने वाली मानकर वोट देने वालों के बीच अपनी साख खोई है। उत्तर भारत में उसे अपने लिए जगह नजर नहीं आ रही।
दिल्ली के स्टूडियो छाप क्रांतिकारी पत्रकार (ज्यादातर यू-ट्यूबर्स) मोदी विरोध और अपनी ऐंठ में भूपेश बघेल को अजेय बताते रहे लेकिन सच यह था कि कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में नुकसान पहुंच रहा था। चुनाव परिणाम बता रहे हैं, हार बड़ी है। रायपुर पश्चिम में विकास उपाध्याय की हार इसका सबसे सटीक उदाहरण है। आक्रामक और खड़ूस माने जाने वाले राजेश मूणत को किसी ने नंबर नहीं दिए थे। मैंने जब कुछ मीडिया कर्मियों से बदलाव आने के बारे में कहा था और यह भी कहा था कि मूणत जीत सकते हैं, तो कोई मानने को तैयार न था। ज्यादातर ने यही कहा भले भूपेश पाटन से हार जाएं, रायपुर पश्चिम में विकास उपाध्याय ने टिकाऊ पकड़ बनाई है।
खुद को दाऊ और कका के रूप में पीआर मैनेजमेंट के जरिए प्रस्तुत करने को अपनी छवि मान रहे कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने यह नहीं देखा कि उनसे जुड़ी खबरें जो भले ही अखबारों में नहीं छप रही हैं, लेकिन उनकी छवि ख़राब कर रही हैं। खबरों को अब अखबारों और न्यूज चैनल्स की जरूरत नहीं होती।
मैंने पहली बार भूपेश सरकार को शराब की अवैध बिक्री की वजह से बदनाम होते पाया था। शाम में मदिरापान करने को अत्यंत सुखद मानने वाले छत्तीसगढ़िया बंधु तक दारू से रोजाना करोड़ों की काली कमाई का परसेप्शन बना रहे थे। दूसरी बार सुना था कि छोटे-छोटे तबादलों की फाइलें भी सीएम हाउस जाती हैं और पैसे या अप्रोच के बिना काम नहीं होता। सच या झूठ मैंने नहीं तलाशा, मगर मेरी जान-पहचान के अनेक लोगों ने बताया कि उनसे पैसे मांगे गए।
आगे मेरे हर बार छत्तीसगढ़ पहुंचने पर भ्रष्टाचार की बहुत सी बातें सामने आती रहीं। जनता के बीच एक नरेटिव स्वत: ही निर्मित होने लगा कि इस सरकार में पैसे बिना काम नहीं होता। कार्यकाल के अंतिम दिनों में पीएससी के नतीजों ने भी बघेल एंड कंपनी की छवि को बहुत दागदार किया। फिर ईडी के छापे पड़ने लगे। शराब के साथ ही रायपुर नगर निगम की आड़ में तुष्टिकरण को बढ़ावा देने की बातें हवा से उतर कर जमीन तक जोर पकड़ने लगीं। ऐन वक्त पर महादेव एप का बम फूटा।
बघेल ये देख नहीं पा रहे थे क्योंकि वे खुद ही अपने दाएं-बाएं के लोगों के नरेटिव के शिकार हो गए थे, जैसे उनके पांच साल पहले डॉ. रमन सिंह हुए थे। पीआर मैनेजमेंट के यशगान ने डॉ. रमन की तरह उनकी भी आंखों में पट्टी बांध दी थी। क्या ही अचरज है कि सर्वे कराने के बाद भी सत्ताधारी पार्टी अंडरकरंट भांप नहीं पाई। सर्वे करने वाले लोग ज्यादातर निम्नमध्य वर्ग या कह लें ज्यादा पढ़े-लिखों से बातें करने की खानापूर्ति करते हैं, क्योंकि उनकी नजर में फ्लक्चुएट करने वाले वोटर्स ही असल ओपिनियन देते हैं और उनसे ही हवा का रूख पता चलता है।
जबकि जमीन पर इसका उलट है। कामगार वर्ग, घरों में चौका-बर्तन करने वाली महिलाओं-युवतियों से लेकर रिक्शे और ठेले चलाने वाले पुरुष सरकार बदलने की ताकत ज्यादा रखते हैं। सर्वे करने वाले करोड़ों लेकर भी उन असल वोटर्स तक नहीं जाते। हालांकि जिन्हें हम गरीब-निम्न आय वाले कह सकते हैं, वे अपनी साफ राजनीतिक राय देने में झिझकते हैं। आमतौर पर वे जिसकी सरकार होती है, उसको ही वोट देने की बात करते हैं। यहां नेता और कार्यकर्ताओं का नेटवर्क काम आता है।
जाहिर सी बात है कि कांग्रेस अपने नेटवर्क को उन वोटर्स तक नहीं पहुंचा पाई जिन्हें वो अपना वोट बैंक बना रही थी और जिनके लिए उसने योजनाओं की बौछार कर रखी थी। आपका छत्तीसगढ़ियावाद भी भाजपा ने ढेर कर के रख दिया। छठ पूजा पर छुट्टी को व्हाट्स ग्रुप्स में घूम घुमाया गया। भाई-भतीजावाद के आरोप भी लगाए जाने लगे। कहा गया कि आपके नजदीकी लोग या तो आपके गाढ़े मित्र हैं या रिश्तेदार, जिनके बिना दाऊ जी कदम आगे नहीं बढ़ाते।
ऊपर से आपके पक्ष में सोशल मीडिया में लिखने वाले कथित बुद्धिजीवी और जानकार और पत्रकार कम्युनिस्ट ज्यादा लगते थे। राम वन पथ गमन जैसे एजेंडे से नरेंद्र मोदी की स्टाइल कॉपी करने भर से आपको फायदा नहीं मिल रहा था, ये बताने वाला भी कोई नहीं था।
हसदेव के जंगलों में कोयले के लिए कटाई का मुद्दा भी कका पकड़ नहीं पाए। नतीजतन सरगुजा में सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई है। आदिवासी हिंदू नहीं हैं, का मसला भाजपा के लिए मसाला बना। बस्तर और सरगुजा में आरएसएस ने बड़ी बारीकी से सनातन पर खतरे को दर्शाया और भाजपा ने वोट बटोरे लिए।
देखने के लिए बहुत कुछ था, दाएं-बाएं वालों ने देखने न दिया। आपने भी संकुचित दृष्टिकोण ही रखा। जनता को साफ नीयत भी नदारद दिखी।
कांग्रेस को स्वतंत्रता की बधाई !!
छत्तीसगढ़ में उसे अपने कुर्सी के नीचे बघेल जी ने बांध रखा था । अपने आप को महान बनाने के चक्कर में, कांग्रेस का छत्तीसगढ़ी करण करके भाजपा के सिद्धांतों का लबादा ओढ़ा कर नया कांग्रेस पैदा किया गया था ।
भाजपा के राष्ट्रवाद के मुकाबले में छत्तीसगढ़िया वाद, कट्टर हिंदूवाद के जगह सॉफ्ट हिदुवाद का फासीवाद सोच पैदा किया गया था, भारत माता जैसा छत्तीसगढ़ी माता का भ्रम पैदाकर लोगों को भावनात्मक रूप से छला गया । पर कुछ भी काम नही आया ।
मोदी की ही रणनीति पर चलते हुए “छोटे मोदी” के रूप में प्रसिद्ध हो चुके बघेल ने अपनी ही सरकार के किसी भी मंत्री और नेता की नहीं चलने दी और प्रदेश को केवल एक तरफा
चलाने की कोशिश की ।
निश्चित रूप से अब तो प्रदेश के छोटे कांग्रेसी कार्यकर्ता भी उनसे उत्तर चाहेंगे कि यह सौम्या चौरसिया की ऐसी क्या योग्यता थी कि उन्हें मुख्यमंत्री बंगले और कार्यालय में सुपर सीएम के रूप में देखा जाता था ? सीनियर आईएएस अधिकारियों को उनसे सलाह लेने की जरूरत पड़ती थी या आदेश दिया जाता था ।
राहुल ने खूब कोशिश की थी, कांग्रेस को उनके कब्जे से निकालने की, पर उनकी ही बहन को पैसे के बल पर और एक कांकेरिया ( हवाई नेता ) चापलूस के माध्यम से अपने पक्ष में कर कांग्रेस के सिद्धांतों के खिलाफ खूब खेल खेला गया था । अंत में इसी खेल में खुद भी शिकार बन गए और लगता तो यही है कि अब पूरी तरह से वे और उनके सारे राजनीतिक साथियों का राजनीतिक भविष्य ही अब चौपट हो चुका है ।
इन 5 सालों के दौरान आदिवासियों पर हुआ अन्याय, बेरोजगारों के साथ ठगी, कर्मचारियों के साथ धोखा सभी ने कई बार इन्हे आईना दिखाया, पर घमंड में चूर इन्हे कुछ भी नही दिखा। उल्टे हमारे जैसे आईना दिखाने वाले लोगों के साथ ही मारपीट से लेकर तरह-तरह धमकी चमकी की गई, कांग्रेस वाला कमान के निर्णय को लगातार नकारा गया । शुरुवात में ही आलाकमान के निर्णय को नजरंदाज करते हुए Kanak Tiwari जैसे सैद्धांतिक गांधीवादी व प्रदेश के आस बड़े बुद्धिजीवी को अपमानित कर इन्होंने कांग्रेस की कब्र तैयार कर दी थी, पर इस कब्र में कांग्रेस तो नहीं ये खुद दफ़न हो गए ।
एक बार फिर !! बधाई कांग्रेस
साइलेंट वोटरों के मतदान से जीत
छत्तीसगढ़ में साइलेंट वोटरों ने अपने मतदान से जीत का ऐसा शोर मचाया कि पूरी बाजी ही पलट गई…3 महीने पहले तक जो पार्टी खुद विश्वास के साथ जीत की उम्मीद नहीं कर पा रही थी। आज वो छत्तीसगढ़ में बड़े अंतर से जीत हासिल कर चुकी है। 4 दिन पहले तक सभी एग्जिट पोल भी जिस अंडर करंट को नहीं भांप पाए। उसे बीजेपी ने हकीकत में बदल दिया। एग्जिट पोल ने तो लगभग बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था…लेकिन हुआ एकदम उलट और जनता ने सभी एग्जिट पोल को एग्जिट करते हुए बीजेपी को दोबारा सत्ता में एंट्री दे दी… जिस प्रचंड बहुमत के साथ 2018 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई थी। वैसी ही बड़ी हार के साथ 2023 में विदाई हो गई। कांग्रेस के भरोसे को खारिज करते हुए बीजेपी के बदलाव का साथ दिया… लेकिन सवाल ये है कि इतना बड़ा बदलाव आया कैसे। राजनीतिक पंडितों का आंकलन तो चलता रहेगा… लेकिन मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि कांग्रेस की हार के ये बड़े कारण रहे….
जीत का ओवर कॉन्फिडेंस
सरकार बार-बार 75 पार का नारा लगा रही थी… जीत का भरोसा होना ठीक है लेकिन अहम बिलकुल भी ठीक नहीं…जैसे 2018 में बीजेपी के नेताओं में ये अहम साफ दिखता था…जिस कारण उनकी सरकार गयी…कांग्रेस का अहम भी जीत से बड़ा बन गया था…..जिसे जनता ने भांप लिया लेकिन कांग्रेस नहीं भांप पाई…
कानून व्यवस्था
छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था बेहद खराब रही…महिला अपराध का लगातार बढ़ता ग्राफ…अपराधियों का बढ़ा हुआ मनोबल….जनता को लगा कि कांग्रेस कि वजह से ये सबकुछ हो रहा है… ऐसा नहीं कि बीजेपी के शासनकाल में छत्तीसगढ़ ने न्याय का स्वर्णिम काल जिया हो…लेकिन बेलगाम रफ्तार से बढ़ते अपराध …और कानून का अपराधियों में खौफ खत्म होना…सबको ये सोचने पर मजबूर करता रहा कि इस पर तो बीजेपी ही कंट्रोल कर सकती है…
टिकट वितरण में चूक
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कांग्रेस से टिकट बंटवारे में बड़ी चूक हुई….कांग्रेस के ही सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों के परफार्मेंस बेहद खराब निकला…विधायक जमीन स्तर पर कनेक्ट नजर नहीं आए….रिजल्ट में इसका परिणाम भी दिखा…कांग्रेस के 9 मंत्रियों का हारना इसका बड़ा प्रमाण है…जबकि जिन 22 सीटों पर कांग्रेस ने विधायकों के टिकट काटे उनमें भी कई सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा…
रोड-इंफ्रास्ट्रक्चर
मैं जिस जगह से आता हूं रायगढ़ यहां की तो बात ही निराली है…यहां कि सड़कों ने कई लोगों को इंस्टाग्राम का स्टार बना दिया…सड़कों के अलावा भी अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के नए काम बेहद कम ही दिखाई देते हैं…सरकार का ज्यादातर फोकस धान और किसान पर रहा…शहरी हिस्सों में विकास के काम को लेकर लोगों में खासा नाराजगी थी…जो चुनाव परिणामों के बाद भी साफ तौर पर देखी जा सकती है….
धर्म
भारत की राजनीति में धर्म और जाति का क्या और कितना योगदान है…इस बहस में न ही पड़ें तो बेहतर…लेकिन छत्तीसगढ़ में इस बार जरूर धर्म राजनीति पर हावी रहा…पांच सालों तक खुद कांग्रेस की राजनीति भी भगवान राम के इर्द-गिर्द घूमती रही…इस बीच सरगुजा-बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे….कवर्धा कांड, बिरहनपुर में हत्या…इन सभी घटनाओं ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में गहरा असर डाला…जिसे कांग्रेस संभाल नहीं पाई….
सोशल मीडिया
सोशल मीडिया के इस दौर में कुछ भी लोकल नहीं…और कोई भी मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय नहीं रहा…देश और विदेशों में हो रही हर घटना को भी लोग अपने सम्मान के साथ सीधे जोड़कर देखते हैं..इस चुनाव में भी सोशल मीडिया का काफी योगदान रहा…जिसे बीजेपी ने बखूबी समझा..और इसका लाभ भी लिया…
अंतिम बात
बतौर नेता भूपेश बघेल मेरे पसंदीदा रहे हैं… पांच साल के कम वक्त में जिस तरह से उन्होंने खुद की पहचान बनाई…युवाओं के बीच में लोकप्रिय हुए…कका जैसा अमिट नाम कमाया ये अपने आप में शानदार है…कांग्रेस को अपनी रणनीतियों पर शायद और बेहतर काम करने की जरूरत है…इसी तरह बीजेपी को भी जनता के जनादेश का सम्मान करते हुए उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करनी चाहिए… हमारी जरूरत के हिसाब से हमें दीजिए…आपके वोट बैंक के लिए बनी रणनीतियों के हिसाब से नहीं…आप जनता की सेवा के लिए चुने गए हैं…तो सेवा कीजिए राजा बनकर राज करने की कोशिश नहीं