“दूनों झन” प्रकाश कुमार “जोक्कर” की कविता

का सुरता हे तोला वो आंगनबाडी के
लाडू जिहा मिला सिर्फ तोला लेकिन खावन दूनो झन

का सुरता हे तोला छुट्टी नई होये राहय
तभो ले भाग के आवन घर दूनो झन

का सुरता हे वो डॉक्टर के सूजी, डर के मारे लुकावन
खटिया तरी दूनो झन

का सुरता हे तोला वो आंगन बाड़ी वाली मैडम के बुलाई
देखय मत कहीके पठऊहा म लूकावन दूनो झन

का सुरता हे तोला वो खाए के बेरा
सब झन बैठ तीन एक कोती
अऊ हम न बैठ थे न एक कोती दूनो झन

मया ल न ई जानत रहेन ,
तभो ले मया करन दूनो झन

 

प्रकाश कुमार ” “जोक्कर”

 

 

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