इंतिफ़ादा
इसराइल और फिलीस्तीन के बीच चल रहे युद्ध में मनुष्य जाति के लिए उत्पन्न खतरे के संबंध में अशोक कुमार पांडे जी की बेहतरीन कविता “जानवर भी पहचानते हैं अपनी ज़मीन की ख़ुशबू”।
युद्ध की विभीषिका और मनुष्य जाति के लिए उत्पन्न खतरे के संबंध में कवि के अपने विचार कविता के माध्यम से व्यक्त किया है।
इसराइल और फिलिस्तीन में हो रही हिंसा की निंदा
हमारे द्वारा किसी भी प्रकार की हिंसा की निंदा की जा रही है, चाहे हमास के द्वारा इसराइल पर किए गए हमले हो या इसराइल के द्वारा फिलिस्तीन में हो रहे हमले हो। दोनों तरफ की हिंसा का हम पुरजोर विरोध और निंदा करते हैं। इतिहास गवाह है कि में हिंसा और युद्ध से कभी किसी भी मामले का अंत नहीं हुआ है और ना ही कभी कोई निष्कर्ष निकला है।युद्ध में हो रहे मनुष्य की जान ,माल के नुकसान और युद्ध के बाद के परिणामों से संवेदनशील मनुष्य हमेशा परेशान होता है। उसी वेदना, दर्द, और संवेदना से सृजन हुई कविता यहां पर प्रस्तुत है।
उसने कहा
मर जाना चाहिए इन सबको
ग़ज़ा पर गिरना चाहिए परमाणु बम
वेस्ट बैंक के लिए मशीनगनें काफ़ी हैं
इतने सारे मुल्क हैं दुनिया में
चलें जाएँ थोड़े-थोड़े हर मुल्क में
जानवर ही तो हैं
दो हाथ-दो पैरों वाले
चार मंज़िले घर के मलबे से
एक कमज़ोर सी आवाज़ आई
जानवर भी पहचानते हैं अपनी ज़मीन की ख़ुशबू
अपने चारगाह की घास उन्हें भी भरती है नशे से
एक दरवाज़ा उनका भी होता है दिन ढलते लौटने के लिए
अपने तालाब का पानी उनका आब-ए-जमजम होता है
जब कुत्तों के अधिकार के लिए
सभ्य देशों में चल रहे हैं आंदोलन
तो हम तो इंसान थे
तुम्हारे यहाँ आने से पहले
रूपी कौर ने व्हाइट हाउस में दिवाली मनाने का निमंत्रणअस्वीकार किया
फिर बरसेगा पानी
और जब तुम बारूद को भीगने से बचाने के लिए
जद्दोजहद कर रहे होगे
इसी मलबे से उग आएंगी हमारी ज़िंदगी की कोंपले
समन्दर से आसमान तक
हमारी साँसों से भर जाएगा
फ़लस्तीन
#ashokkumarpandey
painting : Mother’s Embrace by Nabil Anani