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गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण त्योहार

दीवाली के ठीक अगले दिन

by satat chhattisgarh
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govardhan puja

govardhan puja : दीवाली के ठीक अगले दिन मनाया जाता है गोवर्धन पूजा। यह विशेष रूप से उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान कृष्ण को विभिन्न प्रकार के व्यंजन अर्पित किए जाते हैं। इस लेख में हम गोवर्धन पूजा के महत्व, पौराणिक कथाओं, परंपराओं और रीति-रिवाजों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा का महत्व भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण को एक देवता, एक शिक्षक और एक महान योद्धा माना जाता है, जिन्होंने अपने बाल्यकाल में कई अद्भुत लीलाएं कीं। गोवर्धन पूजा का उद्देश्य भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर गांव के लोगों को बाढ़ से बचाने की कहानी का स्मरण करना है। यह पूजा इस बात का भी प्रतीक है कि प्रकृति, पर्वत, नदियाँ और पेड़-पौधों का संरक्षण करना मानव का कर्तव्य है।

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा

गोवर्धन पूजा की कथा में भगवान कृष्ण और इंद्र देवता का उल्लेख है। माना जाता है कि द्वापर युग में जब कृष्ण बालक थे, ब्रजवासी हर साल इंद्र देवता की पूजा करते थे ताकि वह समय पर वर्षा करें और उनकी फसलें अच्छी हों। एक बार भगवान कृष्ण ने गांव वालों को सलाह दी कि वे इंद्र की पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करें, जो उन्हें जल, चारा और आश्रय प्रदान करता है। गोवर्धन पर्वत उनकी फसलों और पशुओं के लिए अन्न का भंडार है। कृष्ण की सलाह पर गांव वालों ने इंद्र की पूजा छोड़ दी और गोवर्धन पर्वत की पूजा की।

इंद्र देव को अपनी पूजा छोड़ दिए जाने पर क्रोध आया, और उन्होंने ब्रज गांव पर मूसलधार बारिश भेजी। चारों ओर जलप्रलय की स्थिति बन गई। तब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर गांव वालों को उसके नीचे आश्रय दिया। सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत ने गांव वालों को इंद्र के क्रोध से बचाया, और अंततः इंद्र देव को अपनी हार माननी पड़ी। तभी से गोवर्धन पूजा का प्रचलन हुआ, और इसे भगवान कृष्ण के पराक्रम और उनके प्रकृति के प्रति प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा।

गोवर्धन पूजा की परंपराएं और रीति-रिवाज

गोवर्धन पूजा के दिन विभिन्न परंपराएं निभाई जाती हैं। पूजा का आयोजन आमतौर पर घरों में या गांव के मंदिरों में किया जाता है। इस दिन लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत की छोटी-छोटी आकृतियाँ बनाते हैं, जिनके आसपास दीपक जलाए जाते हैं और पुष्प चढ़ाए जाते हैं। इन आकृतियों को प्रतीकात्मक रूप से गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण का प्रतिनिधित्व माना जाता है। इसके अलावा, घरों में अन्नकूट का आयोजन किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के पकवान भगवान को अर्पित किए जाते हैं।

  • अन्नकूट महोत्सव: इस दिन भगवान को सैकड़ों प्रकार के व्यंजन अर्पित किए जाते हैं, जिसमें चावल, दाल, सब्जियाँ, मिठाई और विभिन्न प्रकार के भोजन शामिल होते हैं। इसे अन्नकूट महोत्सव कहा जाता है। अन्नकूट का अर्थ है “अनाज का पहाड़”। मंदिरों में अन्नकूट के व्यंजनों को एक पर्वत के आकार में सजाया जाता है, जो गोवर्धन पर्वत का प्रतीक होता है।
  • गायों की पूजा: गोवर्धन पूजा के दिन गायों की पूजा का विशेष महत्व है। गाय हिंदू धर्म में पवित्र मानी जाती है और उसे माता का स्थान दिया गया है। इस दिन गायों को स्नान कराकर सजाया जाता है और उनके मस्तक पर तिलक लगाकर पूजा की जाती है। यह पूजा गायों के प्रति सम्मान और उनकी महत्ता को दर्शाने के लिए की जाती है।

गोवर्धन पूजा का संदेश

गोवर्धन पूजा से हमें कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों की देखभाल और संरक्षण करना चाहिए। भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का संदेश देकर यह बताया कि हमें प्रकृति की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यही हमारा असली सहारा है। गोवर्धन पूजा यह भी सिखाती है कि भगवान का सच्चा भक्ति वही है जो प्रकृति और प्राणी मात्र के प्रति प्रेम और सम्मान दिखाए।

इस पूजा का एक और संदेश यह है कि अहंकार और अहंकार का पतन होता है। इंद्र देवता ने अपने अहंकार में आकर ब्रजवासियों को दंडित करने की कोशिश की, लेकिन अंततः भगवान कृष्ण के समर्पण और परोपकार के सामने उनकी हार हुई। इससे यह स्पष्ट होता है कि किसी भी प्रकार का अहंकार विनाश का कारण बन सकता है।

विभिन्न क्षेत्रों में गोवर्धन पूजा के आयोजन

गोवर्धन पूजा मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। मथुरा और वृंदावन में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है, जहां भगवान कृष्ण का जन्म और बाल्यकाल बीता। इन स्थानों पर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा भी की जाती है। भक्तजन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, जिसे ‘परिक्रमा’ कहते हैं। इस परिक्रमा का उद्देश्य भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत के प्रति भक्ति प्रकट करना है।

गोवर्धन पूजा के दौरान भक्तों के द्वारा गाए जाने वाले भजन

गोवर्धन पूजा के समय भक्तजन भजन गाकर भगवान कृष्ण की स्तुति करते हैं। इन भजनों में गोवर्धन पर्वत के महत्व और भगवान कृष्ण की महिमा का गुणगान होता है। कुछ लोकप्रिय भजन हैं:

  • “गोवर्धन गिरिधारी, आए शरण तुम्हारी”
  • “गोवर्धन पूजा का महोत्सव आज मनाना है”
  • “श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम”

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