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“मिर्ज़ा” की आवाज ही उनकी पहचान थी

गिरीश पंकज

by satat chhattisgarh
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His voice was his identity

Mirza Masood : आज मिर्ज़ा मसूद जी सुपुर्द-ए-खाक हो गए. कल उनका इंतकाल हुआ था.इन दिनों इंदौर में रहते थे.रायपुर से उनका गहरा लगाव था इसलिए रायपुर में ही उनकी अंत्येष्टि हुई. आज सुबह मौदहापारा के कब्रिस्तान में सुपुर्द ए खाक हो गए. आप रायपुर आकाशवाणी के महत्वपूर्ण उद्घोषक थे. उनकी भारी भरकम आवाज़ के कारण लोग उन्हें आवाज का जादूगर भी कहते थे. वह अंतरराष्ट्रीय कमेंटेटर भी थे. वर्षों पहले उन्होंने कई बार हॉकी के अंतरराष्ट्रीय मैचों की कमेंट्री की. जैसे फर्स्ट एशिया कप हॉकी प्रतियोगिता पाकिस्तान, पंचम विश्व कप हॉकी प्रतियोगिता बम्बई, दिल्ली एशियाड 1982, चैंपियन ट्रॉफी कराची पाकिस्तान दक्षिण कोरिया सियोल ओलंपिक 1988 और राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में उन्होंने हिंदी कमेंटेटर की भूमिका निभाई। उनकी कमेंट्री सुनना भी अपने आप में एक अनुभव होता था. हॉकी खिलाड़ियों के साथ मानो वह भी दौड़ रहे होते थे. ऐसी तीव्र गति से कमेंट्री करते थे. उन्होंने अपनी अवंतिका और रायपुर नट मंडल नामक रंग संस्थाओं की स्थापना भी की. उनके व्यक्तित्व को समझने के लिए एक उदाहरण पर्याप्त था कि उन्होंने अपने बच्चों का नाम कबीर रखा था. मिर्ज़ा साहब एक महत्वपूर्ण रंगकर्मी भी थे. उन्होंने अपने समय में अनेक नाटकों के सफल मंचन किए. लगभग अस्सी नाटकों का मंचन किया. आकाशवाणी रायपुर में काम करते हुए उन्होंने मुझसे अनेक रेडियो प्रहसन लिखवाए. और उसमें एक पात्र के रूप में अभिनय भी किया. ‘मिर्जा’ नाम के कैरेक्टर बेहद लोकप्रिय हुआ. तीन पात्रों वाले प्रहसन में मिर्जा भी एक प्रमुख भूमिका में होते थे. दो-तीन बड़े रूपको में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जैसे मैंने एक रूपक लिखा था ‘मर न पायेगा हरापन देखना’. शीर्षक पर उन्होंने मजाक करते हुए कहा था, ” मर न पाएगा हरामीपन देखना”. एक दौर था जब अभी रायपुर के रंगकर्म की शान हुआ करते थे. अनेक महत्वपूर्ण सरकारी आयोजनों में उन्हें उदघोषक के रूप में ससम्मान आमंत्रित किया जाता था. उन्हें छत्तीसगढ़ सरकार का महत्वपूर्ण चक्रधर सम्मान मिला. मुझे अच्छे से याद है कि सम्मान के लिए उन्होंने आवेदन नहीं किया था. निर्णायक मंडल में मैं था. और भी कुछ मित्र थे.हम सब ने सर्वसम्मति से यह निर्णय क्या कि यह सम्मान इस बार मिर्जा मसूद को ही दिया जाना चाहिए. फिर निर्णायक मंडल के लोग उनके घर गए और उन्हें इस सम्मान के लिए मनाया. तो ऐसे थे हमारे मिर्जा मसूद.उनके सांस्कृतिक योगदान को हम भूल नहीं सकते. 81वर्ष की आयु में वे इस असार संसार से विदा ली.उन्हें शत-शत नमन!!

मिर्ज़ा साहब को सादर श्रद्धांजलि

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