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मैं नदी से संवाद करती रहती हूँ

इंद्रावती नदी बस्तर की जीवनदायिनी नदी है, मैं दूर ठहर कर इस जीवनदायिनी नदी से संवाद करती रहती हूँ, नदी के बहते शांत जल में कहीं कोई हलचल नहीं पर जैसे ही मैं संवेदनाओं का कोई कंकड़ उसकी ओर फेंकती हूं नदी बिलख उठती है, बस्तर का इतिहास, बस्तर का वर्तमान, भूत, भविष्य सब कुछ पानी की सतह पर लिखती मिटाती नदी का दर्द मेरी आंखें पढ़ पाती हैं. एक पूरी सभ्यता को अपनी गोद में सुलाती हुई इंद्रावती नदी, नदी नहीं, मेरे लिए वह सहेली है, मेरी दिनचर्या की सहचर है, मेरे विचारों की प्रगाढ़ता की पहली स्त्रोत है, मेरे लिखे शब्दों की पहली पाठक भी वही है। इंद्रावती नदी साक्षी है बस्तर के आदिवासियों के संघर्ष की, जल, जंगल, जमीन की लड़ाई के लिए लड़ी गई हर लड़ाई की, साक्षी है तीर – धनुष के बारूद, बंदूक में बदल जाने की कहानी की, इंद्रावती ने बस्तर की मिट्टी को उपजाऊ ही नहीं बनाया बल्कि यहाँ की मिट्टी में प्रतिरोध का जो बीज दफन था उसे अपनी आद्रता, अपनी नमी देकर पालापोषा है, मेरे भीतर की मनुष्यता को उसी रूप में बनाये रखा जिस रूप में एक माँ अपनी बेटी को देखना चाहती है। इंद्रावती के बहते पानी में जब भी उतरती हूँ मैं , मेरा रोम- रोम उसकी बून्द- बून्द का कर्जदार होता चला जाता है, मैं घुटनों तक डूबकर बस्तर का इतिहास पढ़ने लग जाती हूँ, उस वक्त नदी सिसकती हुई ठहर जाती है मेरी हथेलियों पर, मैं महसूस कर पाती हूँ उसका गर्म जल अपनी नसों में गुण्डाधुर के गर्म लहू सा।

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