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भगवान गणेश और गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी हिन्दु धर्म में एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र , गोवा और  कर्नाटक में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। हिन्दु शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवन गणेश जी का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी के दिन से भगवान गणेश जी की पूजा शुरू होती है।

जो 10 दिनों तक की जाती है वैसे तो आजकल पूरे भारत में बड़ी-बड़ी गणेश प्रतिमाएं और बड़े-बड़े पंडाल के साथ बड़े धूमधाम से 10 दिन तक गणेश पूजन किया जाता है परंतु सबसे अधिक महाराष्ट्र और वह भी मुंबई में गणेश पूजन बड़े विधि विधान और धूमधाम से किया जाता है मुंबई स्थित लालबाग के गणेश पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। हिन्दु शास्त्रों में भगवान गणेश जन्म की कई कहानियां प्रचलित है ।

प्रथम कहानी

शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्र संहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि, माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न किया और उसे अपना द्वार पाल बना दिया। भगवान शिव ने जब प्रवेश करना चाहा, तब इस बालक गणेश ने उन्हें ना पहचानते हुए अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए अंदर जाने से रोक दिया। इस घटना से भगवान शिव क्रोधित हो गए और बालक गणेश का सर अपने त्रिशूल से काटकर अलग कर दिया। कथा में आगे मिलता है, कि इस घटना से माता पार्वती शिव से रुष्ट हो गई और प्रलय करने की बात कहने लगी। तमाम देवताओं ने देवऋषि नारद की सलाह पर मां को शांत करने की कोशिश करने लगे।

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कथा में आगे वर्णन मिलता है कि भगवान शिव ने उत्तर दिशा की, ओर मिले पहले जीव गजराज का सर काट कर ले आये और बालक गणेश के ऊपर लगा दिया। इस घटना के बाद माता पार्वती ने आनंदित होकर बालक गणेश को हृदय से लगा लिया और ब्रह्मा, विष्णु ,महेश आदि सभी देवताओं के सामने भगवान गणेश को अग्र पूज्य होने का वरदान दिया । कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष होगा । गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है।

इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ‌र्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

दूसरी कहानी

एक बार की कथा है कि, शिव जी देवी पार्वती के साथ नर्मदा तट पर टहल रहे थे । मनोरम और सुंदर स्थान देखकर माता पार्वती जी ने शिव जी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। शिव जी बोले हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा ! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से जीता, कौन हारा?

दैवयोग से तीनों बार पार्वती जी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वती जी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का श्राप दे दिया। बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ। तब  माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश पूजन करने आएँगी। उनके प्रभाव से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे।

एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो। बालक बोला- भगवन! मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ। गणेशजी ने  ‘तथास्तु’ कहा और वहां से चले गये। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा। तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह २१ दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।

वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने ‘गणेश व्रत’ का इतिहास उनसे कह दिया। तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया। कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर ‘ब्रह्म-ऋषि’ होने का वर माँगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। ऐसे हैं श्री गणेशजी, जो सबकी कामनाएँ पूर्ण करते हैं।

भारत में गणेश गणेशोत्सव का इतिहास

गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र से हुई थी। गणेश चतुर्थी का इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा है। मान्यता है कि भारत में मुगल शासन के दौरान अपनी सनातन संस्कृति को बचाने हेतु छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी यानी गणेश महोत्सव की शुरुआत की थी।

छत्रपति शिवाजी द्वारा इस महोत्सव की शुरुआत करने के बाद मराठा साम्राज्य के बाकी पेशवा भी गणेश महोत्सव मनाने लगे। गणेश चतुर्थी के दौरान मराठा पेशवा ब्राह्मणों को भोजन कराते थे और साथ ही दान पुण्य भी करते थे। पेशवाओं के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में हिंदुओं के सभी पर्वों पर रोक लगा दी लेकिन फिर भी बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के महोत्सव को दोबारा मनाने की शुरूआत की। इसके बाद 1892 में भाऊ साहब जावले द्वारा पहली गणेश मूर्ति की स्थापना की गई थी।

गणेश विर्सजन की शुरूआत?

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना करने की मान्यता है और उसके 10 दिन बाद उनका विसर्जन किया जाता है ।

पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणपति जी से महाभारत की रचना को क्रमबद्ध करने की प्रार्थना की थी। गणेश चतुर्थी के ही दिन व्यास जी श्लोक बोलते गए और गणेश जी उसे लिखित रूप में करते गए. 10 दिनों तक लगातार लेखन करने के बाद गणेश जी पर धूल-मिट्टी की परतें चढ़ गई थी। गणेश जी ने इस परत को साफ करने के लिए ही 10 वें दिन चतुर्थी पर सरस्वती नदी में स्नान किया था तभी से गणेश जी को विधि-विधान से विसर्जित करने की परंपरा है।

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