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महाकुंभ और तीर्थराज प्रयाग

13 जनवरी 2025 से

by satat chhattisgarh
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Prayagraj : महाकुंभ मेला एक धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उत्सव है, जिसे भारत के चार प्रमुख स्थानों – प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश), और नासिक (महाराष्ट्र) में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। प्रयागराज में आयोजित होने वाला महाकुंभ विशेष रूप से ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है, क्योंकि इसे त्रिवेणी संगम, गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर आयोजित किया जाता है। यह मेला हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए सबसे बड़ा धार्मिक समागम होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु, साधु-संत और तीर्थयात्री शामिल होते हैं। महाकुंभ मेला मानवता का एक अद्वितीय संगम है, जिसे भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रतीक माना जाता है। महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होती है, जोकि 13 जनवरी 2025 को है. वहीं महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी 2024 को अंतिम स्नान के साथ कुंभ पर्व का समापन होगा इसके आयोजन की शुरुआत और इसके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर  यह लेख प्रस्तुत है।

महाकुंभ का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

महाकुंभ मेले की परंपरा का आरंभ प्राचीन काल से माना जाता है, जिसका उल्लेख वेदों, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इसका सबसे पहला उल्लेख पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन की कथा के रूप में आता है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया। समुद्र मंथन से कई रत्न निकले, जिनमें अमृत का कलश भी था। यह अमृत अमरता का प्रतीक था, जिसे पाने के लिए देवता और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। कहा जाता है कि जब अमृत कलश लेकर गरुड़ उड़े, तो उन्होंने धरती के चार स्थानों पर इसे गिराया, जो प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक थे। इसी अमृत कलश की स्मृति में इन चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।

महाकुंभ मेला हर 12 साल के अंतराल पर आयोजित किया जाता है और यह आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है। ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर मेले की तारीख तय की जाती है। विशेष रूप से कुंभ मेला उस समय मनाया जाता है जब बृहस्पति और सूर्य ग्रह विशेष राशियों में प्रवेश करते हैं। प्रयागराज में जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तब महाकुंभ का आयोजन होता है। इस मेले को ‘महाकुंभ’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण होता है, और इसमें करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

प्रयागराज का महत्व

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है, जिसे ‘त्रिवेणी संगम’ कहा जाता है। इस संगम का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। माना जाता है कि यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, और व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। इसी कारण से, प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ मेले में करोड़ों लोग स्नान के लिए आते हैं।

प्राचीन काल से ही प्रयागराज को धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र माना जाता रहा है। यहां पर ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है, और यह स्थान कई महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। महाभारत में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है, जहां इसे ‘प्रयाग’ के नाम से जाना जाता था। इसके अलावा, यह क्षेत्र वैदिक युग से ही शिक्षा और ज्ञान का केंद्र रहा है।

महाकुंभ का आध्यात्मिक महत्व

महाकुंभ मेला न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और आस्था का अद्वितीय संगम भी है। महाकुंभ के दौरान करोड़ों श्रद्धालु संगम में स्नान करने के लिए आते हैं, क्योंकि माना जाता है कि इस समय संगम में स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह आयोजन भक्तों को आत्मिक शुद्धिकरण और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है। कुंभ मेला साधु-संतों, योगियों और तपस्वियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो इस अवसर पर एकत्रित होकर धार्मिक विचारों का आदान-प्रदान करते हैं और साधना में लीन होते हैं।

कुंभ के दौरान विशेष स्नान पर्वों का आयोजन होता है, जिन्हें ‘शाही स्नान’ कहा जाता है। यह शाही स्नान अखाड़ों द्वारा किया जाता है, जो कुंभ मेले का अभिन्न अंग होते हैं। अखाड़ों का गठन विशेष रूप से साधु-संतों द्वारा किया जाता है, और वे अपने शिष्यों के साथ कुंभ मेले में भाग लेते हैं। शाही स्नान के दौरान साधु-संत संगम में स्नान करते हैं, और इसके बाद आम श्रद्धालु स्नान करते हैं। यह दृश्य अत्यंत भव्य और अद्वितीय होता है, जिसमें लाखों लोग एक साथ संगम में स्नान करते हैं।

कुंभ मेला और समाज

कुंभ मेला न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह मेला भारतीय समाज की विविधता और एकता का प्रतीक है, जहां देशभर से लोग एकत्रित होते हैं। यहां विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं का संगम होता है, और यह भारत की बहुलतावादी संस्कृति का उत्सव है। महाकुंभ के दौरान लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, और समाज के विभिन्न वर्गों के लोग एक साथ आकर सामाजिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

इसके अलावा, कुंभ मेला कला, साहित्य और संगीत के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेले के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें लोक नृत्य, संगीत, नाटक और कला प्रदर्शनियां शामिल होती हैं। इससे न केवल भारतीय संस्कृति की समृद्धि का प्रदर्शन होता है, बल्कि यह कला और संस्कृति के संरक्षण में भी योगदान देता है।

कुंभ मेला और आर्थिक प्रभाव

कुंभ मेला आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह आयोजन स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है और रोजगार के अवसर प्रदान करता है। मेले के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक प्रयागराज आते हैं, जिससे होटल, ढाबे, परिवहन, और अन्य सेवाओं की मांग बढ़ती है। इससे स्थानीय व्यापारियों और छोटे उद्योगों को लाभ होता है। इसके अलावा, सरकार द्वारा कुंभ मेले के लिए किए गए आधारभूत संरचना विकास, जैसे सड़क, पुल, और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं का निर्माण भी स्थानीय विकास में योगदान देता है।

कुंभ मेले के दौरान धार्मिक पर्यटन का भी विशेष महत्व है। मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालु न केवल प्रयागराज आते हैं, बल्कि वे अन्य धार्मिक स्थलों की यात्रा भी करते हैं, जिससे धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलता है। कुंभ मेला वैश्विक स्तर पर भी प्रसिद्ध है, और इसमें विदेशी पर्यटकों की भी बड़ी संख्या में भागीदारी होती है, जिससे भारतीय पर्यटन उद्योग को भी लाभ होता है।

कुंभ मेला का आयोजन और चुनौतियाँ

महाकुंभ मेला का आयोजन अत्यंत विशाल और जटिल होता है। करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं को समायोजित करने के लिए प्रशासन द्वारा विशेष व्यवस्था की जाती है। इसके लिए अस्थायी शहर का निर्माण किया जाता है, जिसमें तंबू, शौचालय, स्वच्छ पेयजल, और अन्य सुविधाएँ शामिल होती हैं। मेले के दौरान सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और यातायात व्यवस्था सुनिश्चित करना भी प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती होती है।

कुंभ मेला के आयोजन के दौरान सरकार और प्रशासन द्वारा स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। मेले के दौरान लाखों की संख्या में लोग संगम में स्नान करते हैं, जिससे जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके लिए प्रशासन द्वारा गंगा के जल को स्वच्छ रखने के विशेष उपाय किए जाते हैं। इसके अलावा, प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध और कचरा प्रबंधन की भी उचित व्यवस्था की जाती है, ताकि पर्यावरण को नुकसान न हो।

महाकुंभ मेला: आस्था, संस्कृति और मानवता का संगम

महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति, आस्था, और मानवता का एक अद्वितीय संगम है। यह मेला भारतीय समाज के लिए न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह समाज की एकता, सद्भाव और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक भी है। महाकुंभ के दौरान करोड़ों लोग संगम में स्नान करके आत्मिक शुद्धिकरण की प्राप्ति करते हैं, और साधु-संतों के सानिध्य में धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।

महाकुंभ मेला न केवल भारतीय संस्कृति की धरोहर है, बल्कि यह विश्व धरोहर का भी एक अभिन्न हिस्सा है। यूनेस्को ने 2017 में कुंभ मेले को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ की सूची में शामिल किया। यह मेला न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो भारतीय समाज की गहराई, विविधता, और आध्यात्मिकता को प्रदर्शित करता है।

अंततः, महाकुंभ मेला भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका आयोजन भारतीय समाज के धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों की अभिव्यक्ति है, और यह मेला न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि यह भारतीय समाज की एकता और सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव भी है।

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