...

सतत् छत्तीसगढ़

Home कहानी “माँ का हृदय” : मुंशी प्रेमचंद की कहानी

“माँ का हृदय” : मुंशी प्रेमचंद की कहानी

हिन्दी कहानी

by satat chhattisgarh
0 comment

माधवी के पति की 22 साल पहले मौत हो गई थी। उसके पास कोई धन दौलत नहीं थी और संपत्ति के नाम पर सिर्फ एक बेटा था, जो इस वक्त जेल में बंद था। अपने उस घर में वो अकेली पड़ गई थी और उसके आंसू तक पोंछने वाला कोई नहीं था।
माधवी ने बड़ी दुख तकलीफों को झेलते हुए अपने बच्चे को पाल पोस कर बड़ा किया था। अगर मां-बेटे को जुदा करने वाली मौत होती, तो माधवी सब्र कर लेती और उसके मन में किसी के लिए क्रोध न होता, लेकिन उन्हें जुदा करने वाले तो कोई और थे, जिनके अत्याचार को सहना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। माधवी के मन में बार-बार उन स्वार्थियों से बदला लेने का विचार घूम रहा था।

माधवी के लिए उसका बेटा ही सब कुछ था, जिसे देख कर ही उसे जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला मिलता था। माधवी का बेटा सुंदर होने के साथ ही बहुत होनहार भी था। माधवी ने उसकी अच्छी परवरिश की थी। उसकी गली के सारे लोग उसके बेटे की तारीफ करते नहीं थकते थे और यहां तक कि स्कूल के अध्यापक तक उस पर जान छिड़कते थे।

माधवी के बेटे का नाम आत्मानंद था। आत्मानंद से दूसरों की दुख तकलीफें देखी नहीं जाती थी और लोगों की मदद करने के लिए वह हमेशा तत्पर रहता था। उसे देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह कोई अपराध कर सकता है। माधवी भी यही सोचकर तड़पते हुए दिन काट रही थी कि आखिर उसका क्या अपराध था?

आत्मानंद में गुणों का भंडार था। वह साहसी, निस्वार्थ और देशप्रेमी होने के साथ-साथ कर्तव्य का पालन करने वाला इंसान था। साथ ही वो राजनीति में रुचि रखता था। वो बेबाक था और अपने राजनीतिक लेखों की वजह से सरकारी कर्मचारियों की नजरों में आ गया था। पुलिस भी उसकी हरकतों पर नजर रखती थी। पुलिस बस एक मौके की तलाश में थी, ताकि वो उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल सकें।
जिले में पड़े एक डाके ने उन सभी लोगों को आत्मानंद को फंसाने का अवसर दे दिया, जो उसे पसंद नहीं करते थे। डाके से तार जुड़े होने का हवाला देकर आत्मानंद के घर की तलाशी ली गई, जहां मिले कुछ पत्रों व लेखों को डाके का मुख्य कारण बताते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया गया। अपने आरोपों को सिद्ध करने के लिए पुलिस ने कुछ और युवकों को भी गिरफ्तार कर लिया और आत्मानंद को गिरोह का मुखिया करार दे दिया गया। जिसके बाद महीने भर तक मुकदमा चला और न जाने कहां-कहां से पुलिस ने ऐसे झूठे गवाह सामने लाकर खड़े कर दिए कि कोर्ट ने आत्मानंद समेत सभी युवकों को दोषी करार दे दिया और 4 साल के कठोर कारावास की सजा सुना दी।
बेटे की हर सुनवाई में जा रही माधवी ने देखा कि इंसान का चरित्र कितना नीच हो सकता है और वह अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी हानि पहुंचाने से नहीं चुकता। अपने बेटे को हथकड़ियों में पुलिस द्वारा जेल ले जाते देख माधवी वहीं बेहोश होकर गिर गई। जिसके बाद कुछ भले लोगों ने उसे तांगे पर बैठाकर घर तक पहुंचाया।

माधवी को जब होश आया, तो उसे पूरा वाकया याद आया। अपने इकलौते सहारे से दूर होने का गम उसे खाए जा रहे था, जो उसे एक पल भी चैन की सांस तक लेने नहीं दे रहा था। कोई रास्ता न सूझने पर माधवी ने अपनी वेदना को ही प्रतिशोध में बदलने का फैसला लिया और उसके बेटे की यह दुर्दशा करने वालों से बदला लेना ही अपने जीवन का मकसद बना लिया।

माधवी के मन में भी प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी। वह बस यही सोच रही थी कि ऐसा क्या करे कि जिससे उन अत्याचारियों से बदला लिया जा सके? देर रात तक माधवी सोचती रही कि विधवा जीवन जीते 22 साल बीत गए, लेकिन अब उसे बाहर निकलना होगा। अपने अंतर्मन से माधवी कहने लगी कि इस दुनिया में अच्छे कर्मों की कोई जगह नहीं और हो सकता है ईश्वर ने भी निराश होकर हमसे मुंह फेर लिया हो, तो ऐसे में उन अत्याचारियों को दंडित करने के लिए उसे ही कदम उठाना होगा।

शाम का वक्त था। लखनऊ में एक बड़ा-सा बंगला झिलमिलाती लाइटों से सजा था। जहां दोस्तों की महफिल सजी थी और गाना बजाना हो रहा था। एक ओर मेज आतिशबाजियों से सजी थी, तो दूसरी और तरह-तरह के पकवान रखे थे। बंगले के चारों ओर पुलिसकर्मी तैनात थे, क्योंकि वह बंगला पुलिस सुपरिटेंडेंट मिस्टर बागची का था। बागची ने एक बड़ा मार्के का केस जीता था, जिससे खुश होकर अफसरों ने उन्हें तरक्की दी थी, जिसकी खुशी में जश्न मनाया जा रहा था। मार्के का केस जिसमें पुलिस बेगुनाह युवकों को झूठे केस में फंसा कर जेल में भर देती थी।
यहां आए दिन उत्सव होते ही रहते थे। महफिल में रौनक बढ़ाने के लिए मुफ्त में गाने-बजाने वाले, आतिशबाजियां और आधे दामों पर मिठाइयां व फल-फूल उन्हें आसानी से मिल जाते थे। दौड़ धूप करने के लिए सिपाहियों की एक टुकड़ी हर वक्त उनके घर पर तैनात रहती थी। महफिल में गाने-बजाने का कार्यक्रम समाप्त होने के बाद मेहमान अब भोजन करने लगे थे। दुकान से दावत का सामान ढोने वाले मजदूर उन्हें कोसते हुए वहां से चले गए थे।

बस बाकी बचे मजदूरों के साथ एक बूढ़ी औरत वहां काम कर रही थी। वो बूढ़ी औरत चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए अपने काम में मग्न थी। वह महिला और कोई नहीं, बल्कि माधवी थी, जो बदला लेने के लिए मजदूर बनकर काम कर रही थी। महफिल खत्म होते-होते सभी मेहमान जा चुके थे। इक्के-दुक्के मजदूर बचा हुआ खाना समेट रहे थे। माधवी एक कोने में चुपचाप बैठी हुई एकटक सभी को देखे जा रही थी।
सहसा मिस्टर बागची की नजर माधवी पर पड़ी, तो वो उसके पास पहुंचे और बोले, “तुम अब तक यहां क्या कर रही हो? कुछ खाने के लिए मिला या नहीं?” माधवी ने नजर उठाकर बागची को देखकर कहा, “साहब खाना तो मिल गया, लेकिन मेरे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है, अगर आपको ऐतराज न हो, तो मुझे यहीं कोने में पड़ी रहने दीजिए।” माधवी की बात सुनकर बागची ने कहा, “नौकरी कर लेगी बंगले में? बच्चे को पालना आता है क्या?” बागची की बात सुनकर माधवी ने तपाक से कहा, “जी साहब, बच्चों को अच्छे से खिलाना जानती हूं। इसके अलावा, घर के छोटे-बड़े सभी काम कर सकती हूं। बस मुझे एक मौका दे दीजिए।” माधवी की ओर ध्यान से देखते हुए बागची ने कहा, “ठीक है, तुम आज से ही काम शुरू कर दो।”

माधवी को बागची के बंगले में काम करते हुए एक महीने से अधिक हो गया था। माधवी अपने काम में इतनी निपुण थी कि उससे पूरा घर खुश था। बागची की पत्नी का स्वभाव चिड़चिड़ा था और वह आलस व अपनी खराब सेहत के चलते दिन भर बिस्तर पर या सोफे पर पड़ी रहती और नौकरों पर चिल्लाती रहती। उसके स्वभाव के कारण बच्चे का ध्यान रखने वाली आया ज्यादा दिन न टिक पाती। माधवी उसकी जली कटी बातें सुनकर भी चुपचाप अपने काम में लगी रहती, इसलिए बागची की पत्नी को उससे कुछ खास शिकायतें नहीं थी। उसने बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी भी माधवी को ही दे दी थी।
बागची और उनकी पत्नी को इससे पहले भी कई बच्चे हो चुके थे, लेकिन अज्ञात कारणों से उनका एक भी बच्चा कुछ महीनों या फिर साल भर से ज्यादा जीवित नहीं बच पाता था। इसलिए, इस बच्चे पर दोनों मां-बाप की जैसे जान बसती थी। पढ़े लिखे होने के बावजूद दोनों अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए टोना-टोटका व जंतर-मंतर अपनाने से भी परहेज न करते थे।

बच्चा माधवी के पास ही ज्यादा समय बिताता, इस वजह से वो माधवी से काफी ज्यादा घुल मिल गया था। अगर माधवी कुछ देर के लिए भी उसकी नजरों से दूर हो जाती, तो बच्चा जोर-जोर से रोने लगता। बच्चा माधवी को ही अपनी मां समझता और वह साथ खेलती तो ही खेलता, वह दूध पिलाती, तो पीता और वह सुलाती, तो ही उसे नींद आती। अपने पिता को तो बच्चा जैसे कोई अजनबी समझता और मां उस पर ध्यान नहीं देती थी।
माधवी को लगा था कि बड़े घर में काम करने से तनख्वाह अच्छी-खासी मिल जाएगी, जिससे महीने का खर्च पूरा हो जाएगा, लेकिन यहां तो नौकरों से हर एक पैसे का हिसाब लिया जाता। एक दिन बच्चे को गोद में उठाए माधवी ने मालकिन से कहा कि बच्चे के लिए कोई खिलौना गाड़ी मंगवा देतीं, तो अच्छा होता। माधवी की बात सुनकर मिसेज बागची ने कुंठित स्वर में कहा, “कहां से मंगवाऊं, इसके लिए खिलौना गाड़ी? हाथ में रुपए भी तो होने चाहिए। इसका खिलौना 10-20 रुपए में आएगा और इतने रुपए कहां हैं हमारे पास?”

माधवी ने मिसेज बागची ओर गौर से देखते हुए कहा, “मालकिन, खिलौना ही तो है।” माधवी की बात सुनकर मिसेज बागची ने कहा, “अब तुमसे क्या छुपाना। दरअसल, तुम्हारे मालिक की पहली पत्नी से 5 बेटियां हैं, जो इलाहाबाद के एक स्कूल में पढ़ रही हैं। पांचों कुंवारी हैं और उनकी पढ़ाई-लिखाई और दूसरे खर्चों में इनका आधा वेतन चला जाता है। ऊपर से लड़कियों की शादी करवाने के लिए कम से कम 25,000 रुपए लगेंगे। अब कहां से लाएं इतने पैसे।”
मिसेज बागची की बातें सुनकर माधवी बोल पड़ी, “मालिक को घूस भी तो मिलती होगी ना।” माधवी यह कहकर चुप हो गई। मिसेज बागची ने गहरी सांस भरते हुए कहा, “ऐसी कमाई में बिल्कुल बरकत नहीं होती। काली कमाई का पैसा एक हाथ आता है, तो दूसरे हाथ चला जाता है।”

जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे थे, माधवी के मन में उस बच्चे के लिए स्नेह और भी बढ़ता जा रहा था। कभी-कभी बदला लेने की बात याद आती, तो वह क्रोध से भर जाती और फिर बच्चे को देखकर शांत हो जाती। वहां रहते हुए माधवी मिस्टर बागची के परिवार की स्थिति से वाकिफ हो गई थी। कई बार तो वह अपना दर्द भूलकर उनके परिवार के लिए चिंतित हो जाती और उसका मन दया से भर जाता।

माधवी सोचती रहती, “मालिक आखिर 5 बेटियों की शादी कैसे कराएंगे? ऊपर से पत्नी बीमार रहती है और बच्चा छोटा है। जरूर उनके परिवार पर अभिशाप है, वरना इतना सब होने के बावजूद कौन दुखी रहता है।”

कमजोर बच्चों के लिए बरसात तो बीमारियां लेकर आती है। बरसात में उन्हें अक्सर खांसी, जुकाम और बुखार घेर लेता है। ऐसी ही बरसात में माधवी एक दिन किसी काम से अपने घर चली गई। पीछे से बच्चे ने रो-रो कर पूरा घर सिर पर उठा लिया। कुछ देर गोद में उठाने के बाद मिसेज बागची ने एक नौकर को उसे टहलाने के लिए सौंप दिया।
कुछ देर आंगन में घुमाने के बाद नौकर ने बच्चे को हरी घास पर बैठा दिया। बारिश के पानी से जमीन गीली थी और बच्चा ऐसे ही कई घंटों तक पानी में खेलता रहा। वह नौकर दूसरे नौकरों के साथ गप्पे हांकने में मस्त हो गया। काफी देर बाद जब नौकर को ध्यान आया, तो वह बच्चे को फटाफट भीतर ले गया और उसके कपड़े बदलवाए।

शाम होते ही जुकाम से बच्चे की नाक बहने लगी और खांसी से गले से आवाज आने लगी। देर शाम जब माधवी बंगले में पहुंची, तो बच्चे की हालत देखकर उसका कलेजा फटने लगा। वह बच्चे को लेकर तुरंत मालकिन के पास पहुंची और कहा, “देखो जरा बच्चे का क्या हाल हो गया है? कहीं इसे सर्दी तो नहीं लग गई?” बच्चे की हालत देखकर मालकिन भी हक्की बक्की रह गई, क्योंकि वह ऐसा मंजर पहले भी देख चुकी थी।
मिसेज बागची ने तुरंत नौकरों से अलाव जलाने को कहा। मिसेज बागची और माधवी दोनों पूरी रात बच्चे को ठीक करने में जुटे रहीं। दोनों की आंखों से नींद जैसे कोसों दूर थी। ऐसे में सवेरा कब हो गया, दोनों को पता भी न चला। मिस्टर बागची को जैसे ही बच्चे के बीमार होने की खबर मिली वह डॉक्टर को लेकर सीधे घर पहुंचे। 3 दिन में बच्चे की हालत में सुधार आने लगा, लेकिन वह काफी कमजोर हो गया था।

बच्चे का ख्याल रखने में माधवी ने दिन-रात एक कर दिया। यह वही माधवी थी, जो परिवार का सर्वनाश करने का संकल्प लिए उस घर में आई थी और आज उसी घर के चिराग की सलामती के लिए दिन में हजारों बार ईश्वर से दुआएं मांग रही थी। शायद माधवी की दुआओं का ही असर था कि बच्चे की सेहत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा।

एक सुबह मिस्टर बागची बच्चे के झुले के पास बैठे हुए थे और मालकिन सिर दर्द के कारण चारपाई पर पसरी हुई थी। माधवी पास में ही बैठी बच्चे के लिए दूध गर्म कर रही थी। माधवी की ओर देखते हुए मिस्टर बागची ने कहा, “हम जब तक जिएंगे तुम्हारे एहसान के तले दबे रहेंगे। यह तुम ही हो जो बच्चे को मौत के मुंह से खींच लाई, वरना हम तो उम्मीद ही हारने लगे थे।”

इतने में मिसेज बागची भी उठकर पास आ गईं और माधवी से कहा, “तुम एक देवी बनकर हमारे जीवन के कष्ट हरने के लिए आई हो। आज अगर तुम न होती, तो पता नहीं क्या अनर्थ हो जाता। मेरी तुमसे एक विनती है। वैसे तो जीना-मरना सब ऊपर वाले के हाथ में है, लेकिन तुम्हारे हाथ में जरूर संजीवनी है। मेरी तो किस्मत ही अभागी है, पर हो सकता है तुम्हारे पुण्यों से मेरे बच्चे की जान बच जाए।”

माधवी चुपचाप मिसेज बागची की बातें सुन रही थी। मिसेज बागची रुआंसी आवाज में कहने लगी, “सच कहती हूं अब तो बच्चे को गोद में उठाने तक से मुझे डर लगता है। तुम इसे आज से अपना ही बच्चा समझो और इसकी मां बन जाओ। इसे भी तुमसे बहुत लगाव है। तुम इसे अपने साथ अपने घर ले जाओ और वहीं इसकी परवरिश करो। जब तक यह तुम्हारी गोद में रहेगा, हमें चिंता न होगी।”

मिसेज बागची की बात सुनकर माधवी ने कहा, “मालकिन, क्यों ऐसे बुरे विचार मन में ला रही हो? बच्चे की हालत में सुधार हो रहा है और देखना भगवान की इच्छा से सब कुशल मंगल होगा।” इतने में मिस्टर बागची बोल पड़े, “नहीं बूढ़ी मां, मेरा दिमाग भले ही इन बातों को ढकोसला करार देता हो, लेकिन मन का एक कोना इस पर विश्वास करना चाहता है। मेरी अपनी मां ने मुझे पैदा होते ही एक धोबिन को बेच दिया था, क्योंकि मुझसे पहले मेरे 3 बड़े भाइयों की मौत हो चुकी थी। इसलिए, मेरी जान बचाने के लिए उन्हें जो उचित लगा उन्होंने किया। अब बारी हमारी है और हमसे जो बन पड़ेगा हम करेंगे। तुम इसे आज से अपना ही बेटा मानो और इसे साथ ले जाओ। हमें जब भी इससे मिलने का मन होगा चले आएंगे और खर्च की चिंता न करना, इसकी पूरी परवरिश का खर्चा हम समय-समय पर तुम्हें भेजते रहेंगे।”

मिस्टर बागची ने कहा, “मैं जिस पेशे में हूं मुझे न चाहते हुए भी कई कुकर्म करने पड़ते हैं। झूठी शहादतें बनाकर निर्दोषों को फंसाना पड़ता है। उनकी और उनके परिवारों की न जाने कितनी बद्दुआएं मेरे सिर पर हैं। मैं जानता हूं कि बुराई का फल कभी अच्छा नहीं हो सकता, लेकिन मैं लोभ में आ ही जाता हूं। अगर मैं ये सब ना करूं, तो नालायक करार देकर निकाल दिया जाऊंगा। अंग्रेजों को जहां 100 खून भी माफ होते हैं, लेकिन हम हिंदुस्तानियों की एक गलती भी हमें भारी पड़ सकती है। इसलिए, मेरी विनती है कि हमारे बेटे को स्वीकार कर लो।”

माधवी को भी उस बच्चे से बेहद लगाव था, इसलिए वह खुशी-खुशी मान गई। गदगद होते हुए माधवी ने कहा, “आप दोनों की अगर यही इच्छा है, तो मैं बच्चे को अपनाने के लिए तैयार हूं। मुझसे जो बन पड़ेगा, मैं करूंगी। मेरी भगवान से बस यही दुआ है कि हमारे बच्चे को वो अमर करे।”

बड़ी देर से बच्चा आराम से झूले में सो रहा था। चादर से उसका मुंह ढका हुआ था। माधवी ने दूध गर्म कर बच्चे को पिलाने के लिए जैसे ही उसके मुंह से चादर को हटाया, उसके मुंह से जोर से चीख निकल गई। बच्चे का शरीर पूरी तरह ठंडा हो चुका था और चेहरा पीला पड़ा था। माधवी ने जल्दी से बच्चे को गोद में उठाकर सीने से चिपका लिया और जोर जोर से रोने लगी। बालक सभी को छोड़ भगवान के पास जा चुका था।

दिन भर पूरे घर में मातम पसरा रहा और रोने की चीख पुकारों से जैसे पूरा घर कौंध गया हो। मिस्टर बागची और उनकी पत्नी का भी रो रोकर बुरा हाल था। माधवी जो खुद बच्चे को खोने के दर्द से तड़प रही थी, उन दोनों को सांत्वना दे रही थी। माधवी उनसे कह रही थी, “अगर उसके बस में होता, तो अपने प्राण देकर भी बालक को बचा लेती, लेकिन ऐसा संभव नहीं है।” माधवी जो अपना बदला लेने आई थी, ममता के बंधन में बंध स्वयं दुख लेकर जा रही है। सच कहते हैं कि मां का दिल दया का सागर होता है। मां वह देवी है, जिसकी निर्मलता को कोई भी मैला नहीं कर सकता।

You may also like

managed by Nagendra dubey
Chief editor  Nagendra dubey

Subscribe

Subscribe our newsletter for latest news, service & promo. Let's stay updated!

Copyright © satatchhattisgarh.com by RSDP Technologies 

Translate »
Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00