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भाई की मृत्यु से न तो दुःखी हूं, न विचलित

युकेश चन्द्रकर (मुकेश चन्द्रकर के बड़े भाई)

by satat chhattisgarh
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Mukesh Chandrakar

देह मिट जाती है केवल, पदार्थ की प्रकृति है कि वह स्वरूप बदलेगा। ऊर्जा याने आत्म ! की प्रकृति है कि वह पूर्व में धारित देह में रहकर जिस दिशा में बही है उसी दिशा में देह त्याग कर, पदार्थ के बदलते स्वरूप में अपने योग्य देह चुने।

मेरे भाई की मृत्यु से न तो दुःखी हूं, न विचलित हूं । उसके भीतर दुःखों के गुनगुने महासागर को महसूस किया तो कारण स्पष्टतः जानने में मुझे लगभग 2 वर्ष से अधिक का समय लगा था।

आप सबका मुकेश, मेरी देह में पहुंच चुका है । मेरे अन्दर की एक बूंद, एक ज्योत जो शांति के अनंत महासागर का एक कतरा मात्र है वह ओतप्रोत है मेरे भाई की आत्मा से।

हां ! यह सत्य है। सत्य की अपनी प्रकृति है।
मेरे भाई और मेरा एक साझा स्वप्न है इस दुःखी, पीड़ित और भटकी हुई दुनिया के लिए लेकिन ! यह दुनिया इस योग्य होकर भी, कि बहुत सुंदर हो सकती है हमारी गलतफहमियों के कारण, और अधिक कुरूप, निकृष्ट होती जा रही है जिसके अत्यधिक गंभीर परिणाम आगामी शिशुओं, वर्तमान के बच्चों, किशोरों और युवाओं को भोगने ही पड़ेंगे।

हवा में ज़हर की मात्रा इस हद तक बढ़ जाएगी कि कोरोना जैसी महामारी, आगामी दुष्परिणामों के सामने नज़र भी नहीं आएगी । पीने के लिए साफ पानी नहीं रह जाएगा, खाने के लिए अनाज नहीं रहेगा। अपनी प्यास से व्याकुल हम सबके बच्चों में से करोड़ों बच्चे बेहद मजबूर होकर एकदूसरे का खून पीने लगेंगे, भूख उन्हें लाशें खाने के लिए मजबूर कर देगी, वे ज़ोंबी नहीं होंगे लेकिन उनकी आंखों से बहता हुआ नमकीन पानी भी उन्हें पीना ही पड़ेगा।

इसका समाधान सिर्फ मेरे भाई और मेरे साझे स्वप्न में ही है और पूरे संसार में किसी और के पास नहीं है। ऐसा समाधान जिससे दुनिया के किसी भी सरकार, संस्था, संगठन या मनुष्य को बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा।

यह अंतिम आवाज़ है उस अस्तित्व की जो अनाम है, धर्म की भाषा में इसे ईश्वर, परमेश्वर, अल्लाह या कुछ और कहा गया है और विज्ञान की प्रयोगशाला नाम की अदालत में अब तक बुलाया नहीं जा सका है ।

यह अंतिम स्वर है। सुन लो। सुन लो मेरे बच्चे का स्वप्न, अन्यथा हम सबके बच्चों का जीवन हम किसी भी नर्क की कल्पना से कहीं अधिक भयावह और इतना अधिक दुःखी बना देंगे कि ऐसी अवस्था के लिए कौन सा शब्द, आपको समझाने के लिए इस्तेमाल करूं ? यह मैं अब नहीं समझ पा रहा हूं ।

मेरा भाई इस समय, अनंत सुख में विश्राम कर रहा है और उसने पूरी स्पष्टता से मुझसे कहा है कि जैसी आपकी मर्ज़ी दद्दा ! आपको जो कुछ भी करना है करो लेकिन मेरे को इस दुनिया में दोबारा लाने की तब तक मत सोचना जब तक यह वैसी न हो जाए, जैसी इसे होनी ही चाहिए। मुझे इस दुनिया में तब तक मत लाना दद्दा जब तक मेरे जीते जी यहां मेरा दुःख बांटने वाला कोई एक भी मौजूद न हो !

अब ये कहना मेरे अपने भाई का है या आपकी अपनी होने वाली संतानों का ! आप ही तय करें ।

दो पुष्प हैं मेरे सीने में, उन्हें झर जाने दो
गिरकर तुम्हारे कानों में
इन्हें फल जाने दो
इनके बीज अंकुरित हों
ऐसी उपजाऊ ज़मीन की ज़रूरत है
बंजर हृदयों को सींचने के लिए
अपने ज़िद त्यागने होंगे 🙏

मैंने प्रण किया है कि मेरे भाई के हत्यारों को फांसी की सज़ा दिलाऊंगा और इसके बाद उन्हें माफी भी दिलवाकर रहूंगा। इसके लिए पूरी न्याय व्यवस्था से लड़कर जीतूंगा क्योंकि मेरे भाई को यह युद्ध मेरे स्टाईल में चाहिए ! मुझे अपने भाई के हत्यारों से किसी तरह की कोई भी घृणा या कोई भी शिकायत नहीं है, न हत्या के साक्ष्य छुपाने वालों से, न मेरे भाई की हत्या से खुश होने वालों से, न ही जो हमेशा से हम दोनों भाईयों को कष्ट में ही देखना चाहते थे, न ही उनसे जो हमेशा से हम दोनों भाईयों को मर जाते हुए देखना चाहते थे ! ये सब प्रेम के हकदार हैं, हम सब प्रेम के हकदार हैं, हम सब एक स्वस्थ और सुंदर जीवन के यात्री मात्र हैं, हमारे शरीर मात्र एक पड़ाव हैं जहां हमें विश्रांति में रहकर अगली यात्रा की तैयारी करनी है।

मेरी बात को अनसुनी कर दिए जाने पर भी इस संसार से मुझे कोई शिकायत नहीं रहेगी, मैं अपने भाई को जितना प्रेम करता हूं उतना ही प्रेम इस संसार से करता रहूंगा ! यह कहने वाला भी मैं कौन होता हूं ? प्रेम कभी कोई दावा नहीं करता अपने होने का, वह स्वप्रमाणित है 🙏❤️

सादर सप्रेम प्रणाम मेरी जान मेरे बच्चे, I love you re कुत्ता, मेरा सोना बच्चा खुश रह अब मेरे बेटे, अनंत को उपलब्ध हो गया मेरा बच्चा तू, मौज में रह

मेरे कलेजे के टुकड़े के लिए

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