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आस्था और लोक परंपरा का पर्व

नाग पंचमी

by satat chhattisgarh
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Nag Panchami

Nag Panchami भारतवर्ष की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएँ प्रकृति के प्रत्येक तत्व के साथ गहरे संबंध रखती हैं। यहां नदियाँ, पर्वत, वृक्ष, पशु-पक्षी — सब पूज्य माने जाते हैं। इन्हीं में एक अनोखा और गूढ़ प्रतीकात्मक महत्व रखने वाला प्राणी है – सर्प। नागों की पूजा का पर्व नाग पंचमी, प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का विषय है, बल्कि हमारे लोक जीवन, कृषि संस्कृति, पर्यावरणीय संतुलन और अध्यात्मबोध से भी जुड़ा हुआ है।

नाग पंचमी की पृष्ठभूमि

नागों का वर्णन हमारे पौराणिक ग्रंथों में आदिकाल से मिलता है। महाभारत, स्कंद पुराण, गरुड़ पुराण, पद्म पुराण आदि में सर्पों की कथा और उनके वंशजों का वर्णन विस्तार से किया गया है।
विशेषत: महाभारत के अनुसार, राजा परीक्षित के वध के बाद उनके पुत्र जनमेजय ने नागों के संहार हेतु सर्पसत्र यज्ञ आरंभ किया। इस यज्ञ में पृथ्वी के समस्त नाग जलने लगे। तभी आस्तिक मुनि ने आकर यज्ञ को रोका और सर्प जाति को विनाश से बचाया। तभी से यह दिन नागों के सम्मान और शांति का प्रतीक बन गया।

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शेषनाग, जो अनंत कोटि नागों के अधिपति हैं, स्वयं भगवान विष्णु के शय्या रूप में विराजमान हैं। भगवान शिव के गले में विराजमान वासुकी नाग भी शिवभक्तों के बीच विशेष पूज्य हैं। ये सभी प्रसंग यह सिद्ध करते हैं कि नागों को हिन्दू धर्म में दैवीय दर्जा प्राप्त है।

नाग पंचमी की पूजा विधि और मान्यताएँ

नाग पंचमी के दिन व्रती प्रातः स्नान कर उपवास रखते हैं। दीवारों या कागज़ पर नाग देवता की आकृति बनाकर उसकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है। दूध, अक्षत, दूर्वा, पुष्प, हल्दी और चंदन अर्पित किया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लोग नागबिलों (सर्पों के घर) में दूध डालते हैं और नागों की कृपा हेतु प्रार्थना करते हैं। इस दिन सर्प को मारना सख्त वर्जित माना जाता है।

माता-पिता यह व्रत अपने बच्चों की लंबी उम्र और रोगमुक्ति के लिए करते हैं। मान्यता है कि इस दिन नाग देवता की पूजा करने से सर्प भय से मुक्ति मिलती है तथा संतान सुख, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

लोक संस्कृति और नाग पंचमी

भारत के विभिन्न भागों में नाग पंचमी की परंपराएं विविध स्वरूपों में देखने को मिलती हैं:

  • महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएं घर के मुख्य द्वार पर रंगोली से नागों की आकृति बनाकर पूजा करती हैं।
  • उत्तर भारत में मिट्टी के नाग बनाकर उन्हें दूध चढ़ाया जाता है।
  • कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में विशेष नाग मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
  • राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में इस दिन गोगाजी की पूजा भी की जाती है, जिन्हें नागों का अधिपति माना जाता है।
  • बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोकगीतों के माध्यम से नाग पंचमी की कथा गाई जाती है।

लोककथाओं में नागों को रक्षक, धन-संपदा के संरक्षक और गुप्त ज्ञान के वाहक के रूप में देखा गया है। यही कारण है कि कई संस्कृतियों में नाग ‘कुंडलिनी शक्ति’ के प्रतीक माने गए हैं।

आध्यात्मिक संदर्भ

नाग पंचमी केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि अंतर्मन की चेतना, ऊर्जा और भय पर विजय का प्रतीक भी है। नाग, विशेषकर ‘शेषनाग’ और ‘कुंडलिनी नाग’ को अध्यात्म में मानव शरीर की चेतना शक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। योग में ‘कुंडलिनी शक्ति’ को सर्पाकार कहा गया है जो मूलाधार चक्र में सुप्त अवस्था में रहती है और साधना से जागृत होकर आत्मज्ञान तक पहुंचती है।

पर्यावरणीय संदर्भ

आज जब जैव विविधता पर संकट है, नाग पंचमी का पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि प्रत्येक जीव का पृथ्वी पर कोई-न-कोई महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
सर्प खेतों में चूहों को खाकर प्राकृतिक संतुलन बनाए रखते हैं। परंतु अंधविश्वास और डर के चलते लोग सर्पों को मार देते हैं। नाग पंचमी हमें सर्पों के संरक्षण और प्राकृतिक पारिस्थितिकी के सम्मान का संदेश देती है।

नाग पंचमी भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक श्रद्धा, लोक परंपरा, आध्यात्मिक चेतना और पर्यावरणीय संतुलन — इन सभी को जोड़ता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि भय के बजाय समझदारी, नफरत के बजाय करुणा, और उपेक्षा के बजाय सम्मान के साथ हर जीव के प्रति दृष्टिकोण रखें।
आज के आधुनिक युग में जब हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं, नाग पंचमी जैसे पर्व हमें प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व और संतुलित जीवनशैली की प्रेरणा देते हैं।

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