...

सभ्यता का नमक( पूनम वासम की कविता )

तुमने चुना
किताबों का पन्ना हो जाना
पेंसिल की नोक बनकर
सपनों को आकार देना
चॉक की तरह
जीवन के ब्लैकबोर्ड पर
मनपसंद चॉकलेट समोसे का चित्र बनाना

रीडिंग कॉर्नर की
सजी हुई कुर्सी हो जाना
खो-खो खेलते हुए
किसी टीम का हिस्सा हो जाना
नृत्य करते कदमों का घुंघरू बन जाना

लेकिन तुम भूल गई
तुम्हारा चुनाव कभी तुम्हारा था ही नहीं
तुम्हारी उम्र
तुम्हारी खुशी
तुम्हारी ज़िंदगी
और यहाँ तक कि तुम्हारी मौत भी
यहाँ कोई और तय करता है

तुम बच गईं
बंदूक की गोली से
बारूद और आईडी के शोर से
लेकिन देखो
तुम कहां बच पाई?

सभ्यता के मुहाने पर
आते-आते
एक पनीर का टुकड़ा चखते हुए
तुमने चखा
सभ्यता का नमक
नमक, जो तुम्हारे सपनों को गलाकर
तुम्हारी आत्मा में
अपना स्वाद छोड़ गया

आखिर में, यह नमक, नमक नहीं है
यह जंगली मिट्टी में बिखरी हुई तुम्हारी
देह की राख है, तुम जानती हो
सभ्यता की इस आग का ताप बनाए रखने के लिए
तुम्हारी जैसी सूखी लकड़ियाँ
सबसे पहले जलाईं जाती हैं चूल्हे की आग में।

 

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