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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की “तेजस” उड़ान

कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की “तेजस” उड़ान के बारे में पढ़ा.. अखबार में छपी उनकी तस्वीर में वे जी-सूट पहने हुए थे.. वर्दी मुझे बहुत आकर्षित करती है, व्यक्ति जो भी हो.. उनकी इस उड़ान को मैं राजनीतिक प्रकाश में नहीं देख रही थी.. मैंने उनमें केवल एक ७३ वर्षीय व्यक्ति देखा, जो आपादमस्तक आत्मविश्वास से लबरेज़ दिखा.. अपनी एक मित्र से इस बारे में ज़िक्र किया तो उन्होंने मुझे नेगेट करने का प्रयास किया..

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने  “तेजस” उड़ान भरी


-“It was just a 30minute sortie.. और इतने measures के साथ तो कोई भी flight ले सकता है” उन्होंने कहा..
-“मैं तो सोच भी नहीं सकती, गाड़ी ही अस्सी की स्पीड से चलने लगे तो मुझे डर लगने लगता है, फिर 1.6 मैक यानि 1900 कि•मी• प्रति घण्टे की गति से उड़ने वाले जेट में बैठने की तो मैं सोच भी नहीं सकती, चाहे कितने भी सेफ्टी measures उपलब्ध हों..” मैंने कहा।

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-“तुम्हें प्रसिद्धि नहीं चाहिए न, और तुम्हारी प्राथमिकताएं भी अलग होंगी.. अभी तो कायदे से उनको उत्तरकाशी जाना चाहिए था..”
-“नहीं यार अब ऐसा भी नहीं है.. राग से उन्मत्त होने के बाद ही हमारे भीतर विराग जन्म लेेता है.. सफल होना, प्रसिद्ध होना कौन नहीं चाहता.. हाँ उसे बरत पाना सबके बस की बात नहीं.. एक बात यह भी है कि हम प्रसिद्ध लोगों की उपलब्धियों और नाकामयाबियों को तो याद रखते हैं, पर उनके संघर्ष भूल जाते हैं.. हाँ, पर उत्तरकाशी में स्थिति तनावपूर्ण होती जा रही है.. ऐसी स्थिति में तो मैं anxiety से ही मर जाऊँ..”

खैर, सम्वाद बहुत देर तक चला.. सिलक्यारा टनल में फँसे मजदूरों के जीवन में भी फिलहाल “तेजस” की उड़ान से कईं गुना अधिक adventure है पर उसे induced adventure कहा जाएगा.. निष्कर्ष यही निकला कि सबके अपने संघर्ष हैं, और उसका सम्मान किया जाना चाहिए..

रात को सोते समय मैक्सिम गोर्की की कहानी “बाज का गीत” पढ़ने लगी.. जिनके भीतर साहस का उन्माद हो संसार उन्हीं का गौरव गान गाता है.. हमारा उत्कर्ष दरअसल, सबसे अधिक इस बात पर निर्भर करता है कि हममें गहराई से उभरने या कितनी ऊँची “flight” लेने का साहस है..

मीनाक्षी मिश्र

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