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आया बसंत आया बसंत (कविता)

आया बसंत आया बसंत
कलिया खिल खिल जाती
चहुं दिशाएं उत्सव मनाती
छाई है हरियाली हर ओर
जैसे नाचे है मन का मोर
डाली डाली नव कोपल उगते
उपवन में पुष्प गाथाएं रचते
आसमां में उड़ते पक्षी सभी
हर्षित है अंतर्मन का कवि
नदिया कल कल बहती जाती
पवन बसंत के गीत सुनाती
खेतों में फसलें पक जाती
राई और सरसों लहराती
किसान हृदय उत्साह से भरता
जब बसंत गीत कानों में घुलता
आया बसंत आया बसंत
देखो धरा का रिमझिम तन…

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