पत्थरों को धूप से ज्यादा कठोर बनाया है
मूक दृष्टियों ने
पहाड़ वाचाल नहीं होते
उनकी त्वचा पर उभरती रहीं सबसे सुगम भाषाएँ
उतरती रही कोमल सांत्वनाएँ
हवाएँ उसकी चंदन पीठ पर रगड़ पाठ पढ़ती रहीं
नदियाँ देती रहीं
उदासियों को जवाबी चिट्टियाँ
बदस्तूर इस जमीन पर उतरती रहीं सुबहें
पक्षियों के पंखों से
संसार के सबसे जिद्दी लोग पहाड़ देखते रहे
एक संदेहास्पद चुप्पी के साथ