हज-ए-अक्बर (प्रेमचंद की कहानी)
Premchand’s story : मुंशी साबिर हुसैन की आमदनी कम थी और ख़र्च ज़्यादा। अपने बच्चे के लिए दाया रखना गवारा…
Premchand’s story : मुंशी साबिर हुसैन की आमदनी कम थी और ख़र्च ज़्यादा। अपने बच्चे के लिए दाया रखना गवारा…
Premchand’s story : नागपंचमी आई, साठे के ज़िंदा-दिल नौजवानों ने ख़ुश रंग़ जांघिये बनवाए, अखाड़े में ढोल की मर्दाना सदाएँ बुलंद…
Premchand’s story : दो बहनें दो साल बाद एक तीसरे अज़ीज़ के घर मिलीं और ख़ूब रो धोकर ख़ामोश हुईं…
Premchand’s story : हमारा जिस्म पुराना है लेकिन इस में हमेशा नया ख़ून दौड़ता रहता है। इस नए ख़ून पर…
अब बड़े-बड़े शहरों में दाइयाँ और नर्सें सभी नज़र आती हैं लेकिन देहातों में अभी तक ज़चा-ख़ाना रविश-ए-क़दीम की तरह…
Premchand’s story : नवाब वाजिद अली शाह का ज़माना था। लखनऊ ऐश-ओ-इशरत के रंग में डूबा हुआ था। छोटे बड़े…