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हर तरफ धुआं है – ‘धूमिल’की कविता

सुदामा पांडेय ‘धूमिल’ जी का जन्मदिवस 9 नवंबर

सुदामा पांडेय धूमिल जी का जन्म 9 नवंबर 1936 को खेवली जिला वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। धूमिल पांडेय जी का उपनाम था। सुदामा पांडेय धूमिल जी ने हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज उनके जन्मदिन पर सुदामा पांडेय धूमिल जी प्रसिद्ध रचना और मेरी फेवरेट कविता “हर तरफ धुआं है”,रोटी और सांसद” और ” लोकतंत्र ” यहां पर हम आप लोगों के लिए प्रस्तुत करें है

हर तरफ धुआं है

हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है

अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है-
तटस्थता।
यहां कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है।
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी
उसके लिए, सबसे भद्दी
गाली है

हर तरफ कुआं है
हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है

हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है

उमर मुख़्तार क्या हो गया है तुम्हारे अरबी घोड़ों को?

रोटी और संसद 

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है

मैं पूछता हूँ–
‘यह तीसरा आदमी कौन है ?’
मेरे देश की संसद मौन है।

लोकतंत्र

वे घर की दीवारों पर नारे
लिख रहे थे
मैंने अपनी दीवारें जेब में रख लीं

उन्होंने मेरी पीठ पर नारा लिख दिया
मैंने अपनी पीठ कुर्सी को दे दी
और अब पेट की बारी थी
मै खूश था कि मुझे मंदाग्नि की बीमारी थी
और यह पेट है

मैने उसे सहलाया
मेरा पेट
समाजवाद की भेंट है
और अपने विरोधियों से कहला भेजा
वे आएं- और साहस है तो लिखें,
मै तैयार हूं

न मैं पेट हूं
न दीवार हूं
न पीठ हूं
अब मै विचार हूं।

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