...

सतत् छत्तीसगढ़

Home Chhattisgarh News इस तरह “तीजन बाई” का आना

इस तरह “तीजन बाई” का आना

राजेश गनोदवाले

by satat chhattisgarh
0 comment
Teejan Bai
Teejan Bai : करीब छह – सात बरसों बाद आज तीजन बाई के घर जाना हुआ। प्रसंग था उनका जन्म दिन। पिछली बार जब उनके घर में कुछ समय गुजरा था , [ इण्डिया टुडे की साहित्य वार्षिकी के लिए उन पर एक फीचर लिखने के दौरान ] तो वे चैतन्य थीं और अपनी उसी ऊर्जा के साथ जिसके कारण उनकी पंडवानी “रंग” जाती है। आज लेकिन वे स्वयं से ही जैसे शिकायत कर रही हों कि इस हाल में उन्हें कब तक जीना होगा। “अब मोर जीए के मन नईए!” कांपता और थकावट में लिपटा स्वर जैसे भीतर ही भीतर कहीं घुट गया था। उन्होंने कहा नई कहा एक बराबर था।
स्वास्थ्य अनुकूल न हो तो कोई भी आदमी टूट जाता है। रचनात्मक आदमी के लिए इस ग्रहण की छाया को पचा पाना किस हद तक त्रासद होता है ज़रा करीब होकर इसका अनुभव करें ! वाहवाही, तालियां और सराहना का चहुंओर से सुनाई देने वाला स्वर और इसे सुनने के आदी हो चुके उनके कान। जीवन-संध्या की ऐसी घड़ी में यह एकांत असह्य बन उठता है। तीजन बाई भी उम्र के इसी मोड़ पर हैं। शिथिल हो चुकी देह के साथ पूरी तरह असहाय। तकलीफ एक हो तो बताएं। चौतरफा सिमटते स्वास्थ्य ने घेर रखा है। विश्वविख्यात हस्ती, लेकिन परिस्थितियों से अकेली। कुछ घंटों के लिए उन्हें इस हाल में देखना विचलित करने वाला अनुभव बना!
नियमित प्रस्तुतियों से उनका नाता तो कुछ साल पहले ही छूट गया है! न्योते लेकिन बराबर आते हैं।कभी निरंतर यात्राएं होती थीं। आवाजाही का आलम था। मंचों में उनसे महाभारत के प्रसंग देख, सुन दर्शक चकित होते थे। आज एक पलंग उनकी चौहद्दी है। दिन-रात समूचा समय उसी में। दिनचर्या के नाम पर दवाएं और घेरती , डराती उदासी। वैसे ख़ुद की कमाई से बनाया हुआ पक्का घर है। कहने को घर में लोग हैं लेकिन जैसे कोई नहीं हैं। बात-बात पर उनका करुण कंठ फूट पड़ता है! सुबकने लगती हैं वे!

|| एक ||

इस्पात की सौगात देने बसाया गया शहर भिलाई। इसी के ज़रा पहले एक सड़क बाईं ओर मुड़ते हुए आगे जाकर गनियारी में मिल जाती है। गांव शहरी सीमा से जुड़ा हुआ है। छोटी आबादी वाला गांव। कुछ घर हैं, कुछ दुकानें हैं तो गलियां बेतरतीब नालियों की बसाहट के बीच जैसे अपने अस्तित्व की तलाश कर रही हों कुछ वैसी। गांव की सीमा में घुसते ही वह बुलन्द गूंजता हुआ स्त्री-स्वर कल्पना लोक से अचानक निकलकर सुनाई देने लगता है : “बोल बिंदावन बिहारी लाल की जय ….!
गनियारी न गांव लगता है और न कोई मुहल्ला। सब मिला-जुला सा। एक किराने की दुकान के ठीक सामने लोहे का बड़ा फाटक है। इस फाटक के क़रीब रुकने वाला हर कोई “उन्हीं से मिलने आया है” यह तय मान लिया जाता है। घर और इस किराना दुकान का सम्बन्ध रूखा सूखा सा है।मझौली काठी वाला अधेड़ किराना दुकान में काउंटर पर बैठा दिखाई दिया। चिप्स और नमकीन की झूल रही बहुतेरी लड़ियों के बीच सिर निकाल हर आगंतुक को वह बड़ी जिज्ञासा से देखने लगता है ! लेकिन अपनी जगह से उठता नहीं! यह अधेड़ इस घर की मालकिन का बड़ा पुत्र है। यानी तीजन बाई का बड़ा बेटा। घर उसी स्त्री का है जिसके कारण मध्यप्रदेश आदिवासी लोककला परिषद् – भोपाल ने कभी अपना रचनात्मक स्वाभिमान गढ़ा था। देश-प्रदेश-विदेश ने तभी कायदे से जाना कि महाभारत कंठस्थ हो जब देह-भंगिमाओं का सहारा लेता है और आंचलिक बोली वाले ग्रामीण छौंक में लिपटकर सामने आता है तो वह “पंडवानी” कहलाता है। इसके पीछे आधी सदी से भी पहले से अटल खड़ी है पारधी समुदाय की एक महिला। ऐसी महिला जिसने पारंपरिक कामगिरी को तज कर अपने लिए नया चेहरा तलाश कर गनियारी को प्रसिद्ध कर दिया। उनके गाँव की दूसरी पहचान भी कोई होगी ? इस पर सर खपाने की बजाय “तीजन बाई के कारण गनियारी है!” चाहें तो ऐसा भी कह लें। इसी गनियारी में विश्वरंग का निवास है जानना सचमुच सुखदाई है। लेकिन बढ़ती जाती उम्र जैसे धीरे-धीरे गनियारी की इस गरिमा को छीनना चाहती हों।

|| दो ||

बताई जाती हुई जन्म तिथि के मुताबिक आज तीजन बाई का जन्म दिन है। यानी 8 अगस्त के दिन। “कितने बरस की हो गई होंगी?” तीजन बाई की ही तरह दिखाई देने वाली सबसे छोटी बहन की ओर जब मैं यह जिज्ञासा रखता हूं तो वे सामने इशारा करती हैं। यानी हारमोनियम पर झुर्रियों से भरी उंगलियां नचाने वाले वृद्ध से पूछ लूं!
“होही अस्सी-पचासी के!”
ठीक-ठीक उत्तर नहीं मिलता लेकिन ऐसा अंदाज़ लगाने वाले वहां कुछ और लोग मिल जाते हैं! आज उनके नाती-पोते, बहुएं और मंडली के सदस्यों ने मिलकर जन्म दिन मनाने की ठानी थी। जिसमें विशेष आमंत्रित थे शेख अलीम। रायपुर निवासी अलीम उन्हें हमेशा मां संबोधित करते हैं। और इस शख्स के प्रति तीजन बाई का स्नेह भी घरेलू सदस्यों की तरह है। जिसका अनुभव मुझे बारहा हुआ है। पद्म अलंकरण से सम्मानित होने जब वे राष्ट्रपति भवन गईं तो उनके साथ अलीम भी थे।
हम रास्ते में थे और बारंबार अलीम का फोन घनघना जाए : “ये गनियारी के नजीक पहुंच गे हन।” अलीम बताते हैं नाती बहू का फोन है। हमारी 12 बजे से प्रतीक्षा की जा रही है! हम अकारण ही तय समय से काफी देर बाद गांव में पहुंचते हैं।निवास में आते ही हलचल होने लगती हैं। एक पंडाल लगा है, कुछ कुर्सियां रखी हैं। बिछायत में साजिंदे जमे हैं। रौनक बढ़ते जाती है। घर के सदस्य इधर-उधर होते व्यवस्था में लगने लगते हैं। उधर घर के बाहर सड़क के दूसरी ओर भी पड़ोसी आ बैठे हैं। जिज्ञासा फैल रही है कि उनके गांव की तीजन बाई के घर “कुछू होवत हे।” कुछ तो वहीं से अपनी उस तीजन बाई के बाहर आने की प्रतीक्षा में दम साधे हुए थे जिन्हें उनकी आंखें “दुआरी में बैठे देखने की प्रायः आदी रही हैं।”
लेकिन जिनके लिए इतनी रौनक है वे हैं कहां? आँखें तो उन्हें देखने तरस रही हैं! हम भी तो उन्हें ही मिलने की आस में चले आए हैं। पता लगा वे बिस्तर पर हैं। स्वास्थ्य इजाज़त नहीं देता कि वे बाहर निकलकर जन्म दिन मना सकें। तो क्या मिलने की चाह अधूरी रह जाएगी?
इन खयाल के बीच पंडवानी सीख रहा तीजन बाई के नाती से जवाब सुन उम्मीद जाग जाती है। “सुते हे , फेर बाहिर आबे करही!” घर के दूसरे सदस्य भी बताते हैं कि “केक कटवाबो न” बाकायदा केक का इंतज़ाम है।

“ले सुरु करव न जी!”

व्याकुलता बढ़ रही है। इसी मध्य साजिंदों को आदेश होता है और वे शुरू हो जाते हैं। छोटी बहिन उनसे कहती हैं , “तुमन बजावव, आवाज़ ल सुनही त आही!” तीजन बाई के साथ दुनिया के दर्जनों देश का फेरा लगा आए वादकों की प्रतीक्षा बेचैनी में बदलने लगी थीं। फिर ऐसा समय आमतौर पर आता नहीं जब उनके निवास में बजाने-गाने मिले। दल मास्टर इशारा करते हैं और हारमोनियम की रीड मचलने लगती हैं। तबला, ढोलक , बैंजो और मंजीरा वादक सब मिलकर पंडवानी की पृष्ठभूमि बनाते हैं। कोई पांच-सात मिनट का संगीत ठीक उसी तरह बजता है जिस तरह कार्यक्रमों के दौरान उनके आने का पूर्वरंग तैयार करता था। वही फोर्स और वही रोमांच जिसके सहारे महाभारत के दृश्य-बंध एक अकेली कलाकार साकार कर दिखाती थीं!
महाभारत के पात्रों को तो किसी ने नहीं देखा। लेकिन दुर्योधन, भीम, कुंती,अर्जुन, नकुल, सहदेव या और भी किरदार ; गरजते हुए अथवा करुणा में भीगे कण्ठ का सहारा लेकर जब सामने आते तो लगता वे ऐसे ही रहे होंगे जैसा उन्हें तीजन बाई की पंडवानी बताती हैं। रोचक कल्पना मन में उभरती है कि यदि हम उन महाभारतीय पात्रों को कभी वास्तव में सामने देख लेंगे तो हमें उनकी जीवंतता के आगे तीजन बाई के शब्दों से साकार हुए पात्र अधिक जीवंत लगेंगे!
Teejan Bai

|| तीन ||

अचानक गहमा-गहमी …., एक कमरे की ओर परिवार के सदस्य बढ़ते हैं। कोई तेज़ी से पर्दा खींच कर किनारे लगाता है। “दादी आवत हे!” एक बच्ची चहकती है। तभी भीतर के कमरे से एक अशक्त काया सहारे के साथ आती दिखाई पड़ती हैं। यकीन करना कठिन था कि वे तीजन बाई ही हैं। पद्मविभूषण तीजन बाई। वादकों के चेहरे उन्हें आते देखकर ही खिल जाते हैं! दूरी एक कमरे से निकलकर बाहर आने मात्र की। लेकिन उनके लिए यह फासला भी ऐसा मानो वे पहाड़ लांघ रही हों। सहारा दोनो ओर से उन्हें संभाले है। दर्द से भीगा हुआ फीका चेहरा! सामने दालान में उन्हें बिठाया जाता है।
वाद्य यंत्र पूरे वेग में पूर्वरंग बजा रहे हैं। अचरज हुआ कि आते हुए पूरी तरह अशक्त तीजन बाई मनोयोग से अपने संगतकारों को देखती हैं। वही एकाग्रता जैसी मंचों में उनकी हुआ करती थीं! होंठ भी ज्यों बुदबुदाने लगते हैं। थोड़ी देर की ही खातिर, उनका दुःख संगीत की शक्ति में खो जाता है। मुस्कुराहट पूरी तरह तो आती नहीं। अहसास अलबत्ता होता है कि इतने लोगों को अपने लिए एकत्र देख खुश हैं वे।
पंडवानी की इस दिग्गज के जन्म दिन में पंडवानी के अलावा और क्या हो सकता है। उनके सम्मुख आज उनकी ही एक प्रतिभाशाली शिष्या हैं। उत्साह से भरी गुरु के चरण छूती है वह। एक सहयोगी उन्हें तीजन बाई का इकतारा घर से लाकर देता है और वे तन्मयता से शुरू हो जाती हैं।
तीजन बाई के घर बाहर पंडवानी का प्रवाह इस बार उनके कंठ से नहीं किसी और के कंठ से गूंज रहा है। बलिष्ठ काया वाली अपनी शिष्या को वेगवान ढंग से पंडवानी गाते वे देख रही हैं। इस तरह उन्हें देखना, उस रोज़ वहां मौजूद लोगों के लिए भी नया अनुभव रहा होगा। कभी वे मुस्कुराती और कभी चेहरा उदास होने लगता। इसी बीच केक काटा गया। जैसे-तैसे कुछ रस्में पूरी हुईं। सहारा देकर उन्हें उठाया गया तो तेजी से रुलाई फूट पड़ी। दूर बैठी महिलाएं भी पल्लू मुंह में दबा सुबकने लगीं। बमुश्किल 15 मिनट तक वे बैठी रहती हैं। इसके बाद उनकी हालत देख उन्हें वापस कमरे में ले जाया जाता है!
Teejan Bai
कमरे में असंख्य तस्वीरें हैं। एक कमरे में देवी देवताओं का वास है। पद्म अलंकरण की प्रशस्तियां भी फ्रेम में मढ़ी दीवार पर तंगी हैं। सुर्ख साड़ी वाले आदमकद कटाउट के सम्मुख बैठक में उनका पलंग बिछा है। आजकल वहीं सोई रहती हैं! पलंग पर लिटाए जाते हीं चादर ओढ़ सिमट जाती हैं। जैसे पंडवानी ही सिमट रही हो। मैं पैर छूकर अनुमति लेता हूं तो दोनों हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में हरकत करते हैं।
इस साधक से मिलने छत्तीसगढ़ी फिल्मों के बड़े स्टार निर्देशक – सतीश जैन भी साथ हैं। उन्हें जानने वाले उनके साथ सेल्फी लेना चाहते हैं लेकिन उनकी नज़र तीजन बाई से हटती नहीं! स्थिति को देख विचलित हो सीधा सवाल पूछते हैं कि “ऐसे दिग्गजों के लिए, उनका शेष जीवन भले वे अशक्त हों सुखमय बीते कुछ होना चाहिए। कम से कम उनके चेहरे में रौनक तो बनी रहे!”
बात तो एकदम दुरुस्त है। तीजन बाई ही क्यों लोक मंचों के अनेक कलाकार आर्थिक संकट में दम तोड़ जाते हैं। पता ही नहीं चलता कब वे बिछुड़ गए। जिन्होंने इस राज्य को सही मायनों में पहचान दी उनका अंत समय न्यूनतम कष्ट में गुज़रे इसकी चिन्ता की जानी चाहिए। दुनिया में जिनके फन को लेकर दीवानगी है वे आज असहाय है आर्थिक संकट न भी हो तो कोई तो हो जो उनके “मौन” को “हुकारू” दे सके।
अपनी पंडवानी के दौरान प्रसंग की समाप्ति पर वे प्रायः गाती आई हैं। वही पंक्ति पुनः गूंजने लगती है : “भोले बाबा ला परनाम गंगा मइया ला परनाम!”

You may also like

managed by Nagendra dubey
Chief editor  Nagendra dubey

Subscribe

Subscribe our newsletter for latest news, service & promo. Let's stay updated!

Copyright © satatchhattisgarh.com by RSDP Technologies 

Translate »
Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00