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विश्ववंद्य-तुलसी: विश्वकवि-तुलसी

तुलसी जयंती पर विशेष

by satat chhattisgarh
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Goswami Tulsidas

Tulsi Jayanti : गोस्वामी तुलसीदास विश्व साहित्य के सबसे लोकप्रिय कवि और श्रीराम- साहित्य के सम्राट माने जाते हैं। इन्होने प्रभु श्री सीताराम के चरित्र का आधार लेकर मानव -जीवन की जो व्यापक -व्याख्या की वह प्रणम्य है। विश्वजनीन मानवीय- आदर्शों की स्थापना करके म्रियमाण भारतीय -संस्कृति को पुनर्जीवित किया है। प्रातः स्मरणीय गोस्वामी जी हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ महाकवि हैं। भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र में प्रस्तुत महाकाव्य के प्रमुख लक्षणों से युक्त उनका सर्वदेशिक, सार्वकालिक तथा सर्वजनीन महाकाव्य रामचरित मानस विश्व का अन्यतम महाकाव्य है। जिसमें श्री राम के शील, शक्ति और सौंदर्य का निरूपण दर्शनीय है। तुलसी साहित्य में ज्ञान, कर्म और उपासना भक्ति की पावन त्रिवेणी प्रवाहमान है।जिसमें अवगाहन कर मानव अपने जीवन को धन्य बना सकता है। श्री रामचरित मानस की प्रत्येक पंक्ति कविता नहीं मंत्र है —

” कविता ही नहीं तुम मंत्र गढे, जिनको जग में युग गान मिला।
मानस की हर पंक्ति है पावन, जिसे प्रभू का वरदान मिला।।”
पं. दुर्गा चरण मिश्र

सुप्रसिद्ध रचनाकार वीरेंद्र मिश्र की हृदय स्पर्शी पंक्तिया दर्शनीय हैं

” गीत तुलसी ने लिखे, तो आरती सबकी उतारी।
राम का तो नाम है,, गाथा- कहानी है हमारी “।।
गोस्वामी तुलसी दास जी प्रत्येक मजहब, प्रत्येक समाज, धर्म, संप्रदाय के लिए प्रणम्य हैं। राष्ट्रीय शायर नजीर बनारसी ने गोस्वामी जी के प्रति अपनी भावाभिव्यक्ति करते हुए कहा है कि _” ऐ भारती तहजीब के जीवन दाता,
धरती के मुकद्दर को सवारे तुलसी।
क्यों साथ न रहे तुलसी के गंगाजल,
पार उतारे हैं गंगा के किनारे तुलसी।।”
श्री राम चरित्र के अमर गायक विश्वकवि तुलसीदास श्री राम के पर्याय बन गये। उर्दू के सुप्रसिद्ध शायर नजीर बनारसी की हृदयग्राही पंक्तियाँ दर्शनीय हैं
” संसार को राम ने सवारा लेकिन,
संसार के राम को संवारा तुमने।
जिस राम को बनवास दिया दशरथ ने,
उस राम को पहुँचा दिया घर- घर तुमने।। ”
धर्म से मुसलमान होते हुए भी अब्दुल रहीम खान खाना ने श्री राम चरित मानस से प्रभावित होकर मुसलमानों के लिए उनका धर्म ग्रंथ कुरान बताकर अपने औदार्य का परिचय दिया है -” रामचरित मानस विमल सन्तन जीवन प्रान।
हिन्दुवान को वेद सम जवनहिं प्रगट कुरान।। ”
महाकवि रसखानि ने गोसाई की मधुबानी को खांड सी खिजावनी सी तथा कंद सी कुढावनी स्वीकार किया है।वाल्मीकीय रामायण, रामचरित मानस में ढलकर निखरी है।कालजयी कविश्रेष्ठ गोस्वामी जी के बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रति सुप्रसिद्ध शायर नाजिश प्रताप गढी की हृदयग्राही भावना दर्शनीय है –
” तुलसी तुझे सलामें अदब कर रहा हूँ मै।
जो हो सदाबहार वह माला कहें तुझे।
जो हो गया अमर वह उजाला कहे तुझे।
ईमान का हसीन शिवाला कहें तुझे
साहित्य जगत का हिमाला कहें तुझे
तेरे एक एक शब्द में गुन और ज्ञान है
तू है बोलता आ हिन्दुस्तान है।”
मारिशस के प्रथम प्रधानमंत्री डाँ। शिवसागर राम गुलाम ने बहुत ही मुक्त कंठ से स्वीकार किया है कि –
” जब हमारे पूर्वज भारत से आये थे, तो अपने साथ रामायण लाये थे। मारीशस और तुलसीदास का अटूट संबंध है। ”
द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन मारीशस के मंत्री एवं स्वगताध्यक्ष ने रामचरित मानस की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए कहा था कि – ” कालांतर में हमारे जो पूर्वज अपनी दयनीय दशा से विवश होकर अपनी मातृभूमि से हजारों मील दूर विभिन्न देशों और द्वीपों में जाकर बस गये, उनमें से अधिकांश अपने साथ प्रमुख रूप से तुलसीदास की अमर रचना रामचरित मानस का ही अमूल्य संबल लेकर गये थे। उसी के भरोसे उन्होने अपने धर्म, संस्कृति और भाषा की रक्षा की। ”
उर्दू में प्रकाशित चर्चित ग्रंथ राम चरित मानस के लेखक डाँ. सफदर ने राम और तुलसी की गरिमा को मुक्तकंठ से स्वीकार किया है —
” इतिहास काल के मुँह में चला जायेगा, किन्तु राम थे, राम हैं और राम रहेंगे। राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनकी कथा इन्सानियत जिंदगी को रोशन देने वाला एक ऐसा दीप है जो कभी नहीं बुझेगा। तुलसी ने धर्म की व्याख्या कितने कम शब्दों में व्यक्त की ” परहित सरिस धरम नहिं भाई” अर्थात हमारे जीवन का उद्देश्य दूसरों का हित करना है।

नर्मदा नरम

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