विक्रम संवत की स्थापना 57 ईसा पूर्व में हुई थी
विक्रम संवत भारत की प्राचीन कालगणना पद्धति है, जिसका प्रारंभ महाराज विक्रमादित्य ने किया था। यह संवत भारतीय पंचांगों में प्रमुख स्थान रखता है और धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
विक्रम संवत की स्थापना 57 ईसा पूर्व में हुई थी। अर्थात यदि ईसा कैलेंडर में 57 साल जोड़ें तो विक्रम कैलेंडर का वर्ष।
वैसे बहुत सरल है, थोड़ा पता करें कि शक वर्ष का इन दो कैलेंडर से क्या गणित है।
कहा जाता है कि उज्जयिनी के प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में इस संवत का आरंभ किया था। यह संवत चंद्र-सौर गणना पर आधारित होता है और इसे मुख्य रूप से भारत और नेपाल में अपनाया जाता है।
1. धार्मिक एवं आध्यात्मिक पक्ष
हिन्दू धर्म के सभी प्रमुख त्योहार एवं व्रत विक्रम संवत के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं। नवरात्रि, दिवाली, होली, राम नवमी आदि पर्व इसी पंचांग के आधार पर मनाए जाते हैं।
2. ऐतिहासिक दृष्टिको
यह संवत भारतीय कालगणना की समृद्ध परंपरा का परिचायक है और भारत के गौरवशाली अतीत से जुड़ा हुआ है।
3. कृषि और ऋतुचक्र से जुड़ाव
विक्रम संवत का गणना तंत्र भारतीय कृषि प्रणाली से मेल खाता है, जिससे किसानों को मौसम परिवर्तन और कृषि चक्र की जानकारी मिलती है।
4. राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान
नेपाल में विक्रम संवत को आधिकारिक पंचांग के रूप में अपनाया गया है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्वीकार्यता सिद्ध होती है।
5. वैज्ञानिक आधार
यह संवत चंद्र और सौर गणना को संतुलित करता है, जिससे समय-गणना अधिक सटीक और प्राकृतिक चक्र के अनुरूप होती है।
विक्रम संवत केवल एक पंचांग नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है। यह आज भी करोड़ों भारतीयों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कालगणना के एक सटीक एवं परंपरागत रूप में स्थापित है।
बाकी अपने देश में बहुत से कैलेंडर हैं औऱ सबकी मान्यताएं।