...

विनोद कुमार शुक्ल से मिलकर लौटने पर

कुछ लोग इतवार को बाजार गए
कुछ मॉल
कुछ लोग किसी नैसर्गिक जगह पर
कुछ लोग घर पर ही संवारते रहे घर
हम लोग गये एक वरिष्ठ साहित्यकार के घर

जो लोग बाजार गये वो थैला भर बाजार लाये
मॉल वाले नये जमाने का चुटकी भर संसार लाये
नदी किनारे गए लोग नदी का मुट्ठी भर सौंदर्य लाये
घर पर रुकने वाले घर का सुख
तो
खेत जाने वाले बांह भर का जीवन ले लाये
और हम
अपनी सभी जेबों में
थैला भर संसार, बोरी भर आशीष और कई मन ऊर्जा लाये
साथ में
कवि के कवित्व का चुटकी भर स्वाद
और जीवन का थोड़ा सा अमरत्व भी लाये ।

कहीं जाना सिर्फ जाना नहीं होता
वहाँ से सिर्फ लौट आना भी सही जाना नहीं होता
बल्कि, वहाँ से कुछ लाना ही
अपने जाने का सफल उपक्रम होता।

वैसे ही, जैसे बाजार से लौटे, तो
घर का कोई बच्चा पूछे कि
‘मेरे लिए क्या लाये?’
तुम भी पूछो न अपने मन से
कहीं से आने पर-
‘क्या सीखा? क्या लाये?’

 

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