...

जहाँ ईश्वर की मौत निश्चित है

सबने बाँट लिए हैं अपने-अपने ईश्वर
जंगल, नदी, पहाड़ ही आये हमारे हिस्से
हमनें गढ़ा अपना देव अपनी शर्तों पर

हमारे हिस्से जंगल था सो हमने लकड़ी में प्राण फूँक दिये
हमने ईश्वर की बनाई हुई दुनिया में अपने हिस्से का संसार अकेले ही रचा

तुलार पर्वत ने किसी चित्रकार की तरह आंगा की तस्वीर उकेर दी पत्थरों पर
ताकि पहचान सकें हम अपना देव

हमारे हिस्से पहाड़ थे सो हमने पहाड़ों की कठोर भाषा में तय किये अपने जीवन के मूलमंत्र

देव की नाल काटती गाँव की औरतें शल्यचिकित्सक की भांति सतर्क होती हैं
जैसे किसी ने कप्यूटर में भरा हो कोई सॉफ्टवेयर
वैसे ही वो भरतीं हैं आंगा देव के ह्रदय में चलती-फिरती हड्डियों के लिए प्रेम

देव ने हमें नहीं हमने देव को दिया जन्म
देव की उम्र निर्धारित होती है
देव यहाँ मनुष्यों की तरह जीता, खाता, हँसता बोलता है
देव की मनमानी की परिधि तय है

धर्म ने ईश्वर बांट दिए परन्तु हमने देव को काम
देव यहाँ मूकदर्शक की भूमिका में नहीं आते
संकेतों में संवाद की प्रक्रिया चलती रहती है

भक्त की मांग पूरी करना देव की पहली जिम्मेदारी है
‘एक हाथ दे एक हाथ ले’ वाली कहावत
भक्त व देव के बीच प्रार्थनाओं का पुल बनाते हैं

मनुष्यों की बनायी हुई दुनिया की सारी ईटों को एक दिन भरभरा कर कर गिर जाना है

फिर देव कैसे अजर-अमर हो सकते हैं

हमारे हिस्से नदी आई थी सो हमने सौंप दिया नदी के पानी को देव के हिस्से का सारा पुण्य

आंगा देव अब देव नहीं बल्कि सोमारू की देह बन कर पुनर्जन्म लेते हैं बस्तर की मिट्टी में
जहाँ ईश्वर की मौत निश्चित होती है
वहाँ मनुष्य के जिंदा रहने की गुंजाइश बढ़ जाती है.

 

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