...

विधानसभा चुनाव में किन मुद्दों पर होगी तकरार ? कौन है सत्ता का दावेदार?

वर्तमान में देश की मुख्य विपक्षी पार्टी जिन राज्यों में सत्ता में है, उनमें छत्तीसगढ़ सबसे अहम है। राज्य में यहाँ कांग्रेस की सरकार है, वो भी पूर्ण बहुमत के साथ। छत्तीसगढ़ विधानसभा में 90 सीटें हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कुल 90 में से 68 सीटें जीतकर भारी बहुमत से सत्ता में आयी थी। फिलहाल पार्टी के 71 विधायक विधानसभा में है। जबकि उससे पहले तीन टर्म सत्ता में रहने वाली भाजपा 16 सीटों में ही सिमट कर रह गई।

 

उसके बाद हुए उप चुनावों में भी बीजेपी  सिर्फ और सिर्फ चुनावी औपचारिकता ही कर पाई क्योंकि परिणाम नहीं बदले। वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से 2018 को दोहराने की कोशिश में लगी हुई है, तो भारतीय जनता पार्टी भी चुप नहीं नहीं है। पार्टी के राष्ट्रीय आला कमानों का लगातार राज्य दौरा इस बात के पुख्ता प्रमाण है।

 

सत्ता की डगर आसान नहीं ,छत्तीसगढ़ में

विधानसभा चुनाव में  राष्ट्रीय नेतृत्व के सहारे राज्य में बीजेपी ।

भाजपा अपनी पुरानी रणनीति पर ही चलती नज़र आ रही है। पार्टी ने एक तरफ जहां प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष में बदलाव किया तो राज्य में पार्टी की राष्ट्रीय नेतृत्व की सक्रियता भी काफ़ी बढ़ी है। भापजा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह , वर्तमान राष्टीय अध्यक्ष जेपी नड्डा , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बीते दिनों राज्य का दौरा इस बात का संकेत है कि बीजेपी छत्तीसगढ़ को हलके मे नहीं ले रही है।

पार्टी विधानसभा चुनाव को लेकर न केवल गंभीर है, बल्कि विधानसभा के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हर मोर्चे पर घेरने को तैयार है। पार्टी के लिए सरकार को घेरने के लिए सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार है लेकिन कोयला, रेत, नान घोटाला, आदिवासी आदि भी इस उनके सूची में शामिल है। लेकिन रजिनीतिक विश्लेषकों कि माने तो बीजेपी के लिए सोचने वाली बात यह है कि कांग्रेस को घेरने में उसे आम जनों का साथ नहीं मिला है। हालाँकि कुल 11 में 9 संसदों के साथ पार्टी लोकसभा में काफ़ी मजबूत है, फिर भी विधानसभा के जरिए वो 2024 में होने वाले लोकसभा की तैयारी भी कर रही है।

विधानसभा चुनाव में घोषणा पत्र के जरिए चुनाव लड़ेगी पार्टी?

पार्टी के लिए राज्य में सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री का चेहरा है। क्योंकि फिलहाल पार्टी के पास भूपेश बघेल जैसा चेहरा तो नहीं। और राष्ट्रीय नेतृत्व की सहभागिता को अगर छोड़ दें तो पार्टी चुनाव से पहले ही पिछड़ती दिख रही है। पार्टी के लिए घोषणा पत्र के जरिए चुनाव लड़ना एक विकल्प है । लेकिन किन मुद्दों को वो अपने घोषणा पत्र में शामिल करें यह भी एक बड़ी चुनौती होगी। हालाँकि पार्टी इसके लिए लगातार प्रयास कर रही है।

 

छत्तीसगढ़ के संविदा कर्मियों , सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारकों के लिए राज्य सरकार ने जारी किए नए निर्देश,  वृद्ध पेंशन धारकों को मिलेगी अतिरिक्त मँहगाई भत्ता…

 

चुनावी रणनीति के लिए हो रहे बैठकों का दौर लगातार जारी है।  जिसमें सबसे प्रमुख बैठक घोषणा पत्र समिति की हुई है। इसको लेकर हुई बैठक में घोषणा पत्र के संयोजक सांसद विजय बघेल, प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और डॉ रमन सिंह सहित बड़े पदाधिकारी बैठक में शामिल थे। लेकिन घोषणा पत्र में आखिर क्या क्या शामिल किया जाएगा इसका जबाब अभी तक विचारणीय ही है।

 

बैठकों और सम्मेलनों के जरिए जनता को रिझाने का प्रयास।


कांग्रेस अपनी पुरानी रणनीति पर ही चल रही है। और चले भी क्यों न,आखिरकार उसे इसी रणनीति ने 15 सालों के सूखे को खत्म करने में सहायता प्रदान की थी। बैठकों और सम्मेलनों जरिए ही 2018 में कांग्रेस ने लोगों का भरोसा जीता था जिसे 2023 के चुनाव में भी वो दोहरा रही है। पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन हो, जनता तक पँहुचने के लिए भेट मुलाकात कार्यक्रम हो , युवाओं को रिझाने के लिए युवा भेट कार्यक्रम हो, या फिर ग्रामीण वोटों को अपने पक्ष मे करने लिए अलग अलग योजनाओं की घोषणा, लोकार्पण आदि के जरिए पार्टी और मजबूत होती नजर आ रही है। इन कार्यक्रमों के जरिए पार्टी ने प्रदेश में सम्मेलनों की झड़ी लगा दी है। इसके बदौलत पार्टी इस चुनाव में एक कदम आगे है।

 

 

https://twitter.com/satatcg2023?t=4KInpRiu-WBybwBtoaeRww&s=09

Related posts

बस्तर की बेटी को देश का सर्वोच्च कृषि सम्मान

रायपुर : मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने

रायपुर : 14 अप्रैल जयंती पर विशेष :