Secular : अक्सर हम उदार और बौद्धिक लगते शब्दों का शिकार हो जाते हैं, उनके इस्तेमाल के पीछे का मकसद नहीं तलाशते। बांग्लादेश में तख्तापलट का असर भारत पर भी आया है और ‘सेक्युलर’ शब्द फिर से हवा में है। भारत की वर्तमान सरकार के धुर विरोधी कहते हैं कि मोदी एंड कंपनी संविधान से ‘सेक्युलर’ शब्द हटाना चाहती है। चलिए मान लेते हैं कि भाजपा ने धार्मिक ध्रुवीकरण को चरम पर लाने की ठान ली है। लेकिन हर सिक्के का दूसरा पहलू होता है जिसे दिखाया नहीं जाता और अपने पूर्वाग्रहों की वजह से हम देखना भी नहीं चाहते।
दूसरे पहलू की व्याख्या इससे प्रारंभ करते हैं कि सेक्युलर शब्द को संविधान में जोड़ा कब गया था? साल 1976 में! क्या आपने सोचा गहराई से कभी कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान में सेक्युलर शब्द तब जोड़ा गया था जब देश में संवैधानिक सरकार नहीं थी। आपातकाल था। इमर्जेंसी थी।सरकार ने संविधान के तहत भारतीयों को मिले नागरिक अधिकारों को ही प्रतिबंधित कर दिया था। जबरिया नसबंदियाँ तक हो रही थीं। बताया जाता है, एक लाख से भी अधिक आमजन बेवजह गिरफ्तार किए गए थे जिनका राजनीति से वास्ता नहीं था। प्रेस भी जकड़ लिया गया था, जिसके विरोध में अखबारों में संपादकीय का स्तंभ खाली छोड़ जूते की तस्वीर लगा दी जाती थी।
सीधे शब्दों में कहा जाए तो ‘देश के गले में जूता डाल कर उसे बताया गया कि आज से तुम सेक्युलर हुए’।
बिना जांचे सेक्युलर होने को सर्वधर्म समभाव मान चुके विचारकों को यहां मैं भाजपा समर्थक, संघी और मोदी भक्त लग सकता हूं। इस पर बताता हूं मैं सबसे बड़े अचरज की बात कि जिस एक शब्द के इर्द-गिर्द भारत में हिंदू-मुसलमान की राजनीति तय होती है, दोनों पक्षों को समझाया जाता है कि न हिंदू बनो न मुसलमान बनो, सेक्युलर बनो। वो सेक्युलर शब्द न हिंदुओं के शब्दकोष में मिलेगा और न मुसलमानों के। शब्द छोड़िए उसका मूल तक न मिलेगा।
सेक्युलर लैटिन मूल का शब्द है और इसका वास्ता ईसाई धर्म से है। यह ईसाईयत का शब्द है। यह यूरोपियन शब्द है। यह पश्चिमी सोच का शब्द है। इसकी राजनीतिक सहूलियत से भरी कई परिभाषाएं बना दी गई हैं लेकिन क्या इससे इनकार किया जा सकता है कि लैटिन भाषा की भावना और उद्देश्य को भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति से नहीं जोड़ा जा सकता। आप इंटरनेट और किताबों में जाकर पड़ताल कर सकते हैं लैटिन कभी रोमन कैथोलिक चर्चों की अनिवार्य भाषा थी। यानी सेक्युलर ईसाइयों की धार्मिक भाषा में ढला शब्द है। खोजने पर इसके अनेक अर्थ मिलेंगे, किंतु यह थोड़ा पढ़ा आदमी भी जानता है कि शब्द का स्रोत क्या है, मूलार्थ उस पर निर्भर करता है। ईसाइयों की धार्मिक राजधानी वैटिकन सिटी में आज भी लैटिन राजभाषा है।
आज सेक्युलर शब्द की बेतुकी पैरवी करने वाले क्या बता सकते हैं कि क्या सोचकर भारत के सभी धर्मों की भावना को संविधान से अलग करने के लिए रोमन कैथोलिक चर्चों की भाषा के शब्द का आयात किया गया? मुद्दा तो मुख्य यही होना चाहिए कि आपको भारत के संविधान में ईसाईयत का शब्द जोड़ने की क्या आवश्यकता आन पड़ी थी और वो भी आपातकाल के दौरान? क्या संस्कृत, हिंदी और उर्दू में इसके लिए शब्द नहीं था? क्या हम भाषा के मामले में भी इतने गरीब थे कि वैटिकन सिटी की राजभाषा से निकला यह शब्द हमारे संविधान की प्रस्तावना में शामिल कर दिया गया और अब जिसे हटाना असंभव सा है। इसे थोपने में इतिहास के सबसे कुख्यात खल चरित्रों को भी शर्मिंदा कर देने वाली कुटिलता बरती गई। इमरजेंसी के दौरान विपक्ष जेल मे बैठा था और सेक्युलर शब्द को संविधान की प्रस्तावना से जोड़ा गया। आज स्थिति यह है कि इसे हटाने को संविधान के मूल ढांचे में बदलाव करार दिया जा सकता है। जी हां, संविधान से सेक्युलर शब्द हटाना संविधान बदलना हो जाएगा। बताना जरूरी यह भी है कि इस पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द जोड़े जाने से पहले भी भारत धर्म निरपेक्ष ही था।
अगली बार बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक की बहस में ‘सेक्लुयर’ का इस्तेमाल करने से पहले सोचिएगा जरूर। और एक रोटी के लिए लड़ती दो बिल्लियों और तराजू लेकर उनका निर्णय करने वाले बंदर की कहानी भी याद कर लीजिएगा।