संदीप रेड्डी वांगा की ‘सिनेमा’Animal (एनिमल)
संदीप रेड्डी वांगा का ‘सिनेमा’ एनिमल देख ली है। हीरो के सनकी न होने जैसे सेट पैरामीटर्स तोड़ता अति वॉयलेंट प्रस्तुतिकरण! टाइटल पूरी फिल्म को जस्टीफाई करता है। जानवर कैसे होते हैं? रणविजय (रणबीर कपूर) और अबरार ( बॉबी देओल) जैसे। मुझे रणबीर कपूर का यह रोल करना हैरत में डाल गया है। उनके साहस को सलाम।
मुदा कहीं पढ़ी एक बात याद आती है कि ऋषि कपूर ने उन्हें सलाह दी थी, एक्शन-मसाला से ही असली स्टारडम मिलता है।
ऋषि ने स्वीकारा था उनका रोमांटिक हीरो होना अमिताभ बच्चन की एंग्री यंगमैन छवि के सामने खो गया और वे उस जगह पर नहीं पहुंच पाए जिसके तमन्नाई थे या डिजर्व करते थे। उन्हें रणबीर के कंटेंट बेस्ड सिनेमा को तरजीह देने पर यह लगा होगा, बेटे के साथ वो न बीते जो उन्होंने बिताया।
कपूर खानदान में सबसे अच्छे कलाकार कौन हुए
सबसे फेमस कपूर खानदान में सबसे अच्छे कलाकार कौन हुए? पृथ्वीराज कपूर! नहीं वे स्टेज का नाटकीय अभिनय करते थे। उनकी रौबदार पर्सनैलिटी से प्रभावित दर्शक उनके अभिनय की कमजोरियां नहीं देख पाते थे। मुगल-ए-आज़म में दिलीप कुमार को उनके साये में तौला जाए तो बारीकी समझने वाले दिलीप कुमार को बहुत ज्यादा तौलेंगे।
राज कपूर ! राज कपूर भी नाटकीय ही थे, अंदाज में दिलीप कुमार के सामने वे कच्चे लगते हैं। अब दिलीप कुमार की महानता देखिए, जिस जमाने में फिल्मी कलाकार ओवर एक्सप्रेशन और लाउड होने को एक्टिंग का फिक्स रूल मानते थे, वहां दिलीप कुमार इस आयाम पर पहुंच गए थे जिससे आम दर्शक और पारखी विश्लेषक दोनों कन्विंस हो जाते हैं।
आज के नायकों की नस्ल छोड़ दें तो पीछे वाले तकरीबन सारे बड़े सितारों ने दिलीप कुमार की कहीं न कहीं, कभी न कभी नकल की है। शम्मी कपूर औसत अभिनेता रहे, शशि कपूर बहुत अच्छे किंतु स्क्रीन प्रेजेंस में बहुत प्रभावी नहीं। स्क्रीन प्रेजेंस वो शै है जो पृथ्वीराज कपूर को सदा का अकबर, राज कपूर को भोला भारतीय और शम्मी कपूर को भारत का एल्विस प्रेस्ली बनाती है।
स्क्रीन प्रेजेंस को शाहरूख के स्टारडम से समझा जा सकता है, वे उतने अच्छे अभिनेता नहीं है जितने करार दिए जाते हैं, लेकिन चूंकि स्क्रीन पर जादुई असर पैदा करते हैं, उस जादू से उनके प्रशंसक स्वीकारना ही नहीं चाहते कि वे एक बंधे हुए अभिनेता हैं, एक ही तरह का अभिनय करते हैं।
रणधीर कपूर मामूली, राजीव कपूर बहुत मामूली मुदा ऋषि कपूर अद्भुत अभिनेता हुए। ऋषि कपूर को वाकई में अपनी प्रतिभा के मुकाब़िल मुकाम न मिला। उन्हें सीधे गोल गले का स्वेटर पहनने के अलावा अपने गोल-मटोल शरीर पर ध्यान देना था। स्क्रीन प्रेजेंस!
कपूर खानदान में करीना कपूर और रणबीर कपूर सर्वश्रेष्ठ हुए हैं आज तक! करिश्मा भी अच्छी रहीं, मगर अद्वितीय नहीं, ये दोनों अद्वितीय हैं।
एनिमल में जानमार एक्टिंग
रणबीर ने एनिमल में जानमार एक्टिंग की है। नेचुरल! कहीं न ज्यादा चेहरा बनाया, न आवाज को सामने की कतार के दर्शकों की सीटियों के लिए बेस! छाती सफाचट नहीं की, पैरों यहां तक कि जांघों के बाल भी दिखाए। ये किसी हीरो के लिए अच्छा नहीं माना जाता। सलमान, शाहरूख, अक्षय जैसे बूढ़े अभिनेता भी इसका ख्याल रखते हैं। वीभत्स लगने में भी सुंदर रणबीर को दिक्कत नहीं हुई। उन्हें अपनी सुंदरता का ख्याल नहीं था।
उन्होंने एक पगलैट बेटे का किरदार अंतस से उतारा है। निजी जिंदगी का इनपुट हो सकता है।
बहुत ही अच्छा अभिनय अनिल कपूर का
फिल्म में सबसे अच्छा अभिनय अनिल कपूर ने किया है। बहुत रियल! दिमाग से घूमे हुए बेटे को समय देकर संभाल नहीं पाने की खुद से रंज उनके चेहरे पर और “ये क्या हो रहा है! इस पागल-सनकी के सामने मैं अपनी गलतियों की वजह से ही विवश हूं” का विरोधाभासी स्वर उनकी संवाद अदायगी में उतरा है। वे रणबीर के सनकी से जानवर होने जाने के बाद उसे हड़काते हुए भी उसके सामने हथियार डालने का अभिनय फ्रेम दर फ्रेम करते हैं। एक जगह भी दिल और दिमाग से टूट जाने का एक्सप्रेशन नहीं छूटा है।
नवयुवाओं को फिल्म देखने से पहले एक सलाह है। फिल्म एनिमल देखने के बाद रणविजय बनने की बजाय रणबीर बनें। देखें पर्दे के बाहर ये युवा सुपरसितारा कितना विनम्र और जमीन पर रहने वाला है। हाथ जोड़ता है। पांव छूता है। सबको सर बोलता है। बॉबी देओल को प्रमोशन में अपने से ज्यादा तवज्जो देता है। बॉबी देओल से याद आया, उनकी निजी जिंदगी का उतार जानकर उनसे सहानुभूति रखने वाले दर्शक उनके बहुत छोटे स्क्रीन टाइम से असंतुष्ट हैं।
बॉबी जितनी भी देर रहे, अपने पूरे करियर में कभी उतने पॉवरफुल अभिनेता नहीं लगे। वे आमने-सामने के दृश्यों में रणबीर पर भारी दिखे हैं। उनकी दाढ़ी उन्हें अलग ही बॉबी बनाती है।
फिल्म देखने लायक है।