वैदिक काल मे सोमलता क रस निचोड़ कर उससे जो यज्ञ किया जाता था उसे सोम यज्ञ कहा है। सोमरस शक्तिवर्धक उल्लास कारक था जो अब लुप्त हो गया।
यज्ञ मे व्यस्त थके ऋत्विग मनोविनोद करते थे उनका उद्देश्य आनंद मय वातावरण बनाना था। उस समय यज्ञ वेदी के पास एक गूलर की टहनी गाड़ी जाती थी जो मीठास का प्रतीक है ये इतना मिठा है कि इसके पकते ही इसमे किड़े पड़ जाते है। इसके नीचे बैठ के वेद पाठी अपनी शाखा का पाठ गान करते थे। होली दहन से 2 हफ़्ते पूर्व एरण्ड वृक्ष की टहनी इसी गूलर का प्रतीक है। इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ भी कहा जाता है। खेत से नये अन्न को यज्ञ मे हवन करके प्रसाद लेने की भी परंपरा है जो आज भी करते है डंडे मे जौ की गेहूं की बाली बांध के उसे भूनते है उस भुने हुए अन्न को संस्कृत मे होलिका कहा जाता है इसलिये इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा।
नारद पुराण के अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भक्त प्रह्लाद को जलाने के प्रयास मे खुद जल गई होलिका के विनाश प्रहलाद की विजय का स्मृति दिवस है होली। यज्ञ के बाद भस्म माथे मे लगाते है उसका विकृत रुप आज होली के दुसरे दिन एक दुसरे मे राख उड़ाते है।
भविष्य पुराण के अनुसार महाराजा रघु के समय ढुण्ढा नाम की राक्षसी के भय से बचने को बच्चो के हाथो मे लकड़ी तलवार ढाल देकर अलग 2 स्थान पर आग जला हल्ला मचाने का आयोजन किया गया था।
मान्यता के अनुसार शिव जी ने आज काम देव का दहन किया था ।
इस दिन आम मंजरी चंदन को मिला खाने का बड़ामहत्त्व है।
फ़ाल्गुन पूर्णिमा के दिन एकाग्र चित्त हिंडोले मे झूलते हूए श्री गोविंद का जो दर्शन करते हैं वो बैकुण्ठ लोक प्राप्त करते हैं।
भविष्य पुराण के अनुसार नारद जी ने युधिष्ठिर से कहा कि पूर्णिमा को लोगो को अभय दान देना चाहिये शत्रुता छोड़ मित्रता करनी चाहिये जिससे सब प्रसन्न रहे इसलिए यह दुश्मनी भूल प्रेम का त्यौहार है।
बालक गांव के बाहर लकड़ी कंडे का ढेर लगावे होलीका का विधिवत पूजन करे होलिका दहन करे ऐसा करने से सारे अनिष्ट दुर हो जाते हैं।
दो ऋतुओ के मिलन के कारण रोगो की संभावना होती है
होलिका के परिक्रमा के समय 140 डिग्री फ़ारनहाइट ताप शरीर मे लगने से शरीर के समस्त रोगोत्पादक जीवाणुओं को हटाने मे समर्थ होती है।होली रंग का पर्व है रंगो का शरीर पर अद्भूत प्रभाव पड़ता है।
होली को मदन उत्सव के नाम से भी जाना जाता है ।
लोग नये वस्त्र धारण कर एक दुसरे पर अबीर गुलाल केशर युक्त चंदन लगा कर एक दुसरे का सम्मान करते है ।
लेकिन लोग इस त्योहार का मायने न समझ कर इसे विकृत अश्लील बना देते हैं।
होली प्राकृत रंगों से ही खेले