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कविता
यह आषाढ़
जो तुमने माँ के साथ रोपा था
हमारे खेतो में
घुटनो तक उठ गया है
अगले इतवार तक फूल खिलेंगे
कार्तिक पकेगा
हमारा हंसिया झुकने से पहले
हर पौधा
तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा
उसी तरह
जिस तरह झुककर
तुमने आषाढ़ रोपा था।
– लीलाधर जगूड़ी