लियो टॉलस्टाय को वैश्विक धरातल पर सार्वकालिक महान साहित्यकारों की सूची में आदर का स्थान है। उनके जीवन और उनके कृतित्व के बारे में विस्तार से हमें कई जगह जानकारी मिलती है। ” वार एंड पीस” और ” अन्ना करेनीना” जैसी सार्वकालिक महानतम कृतियों के कारण टॉलस्टाय हर काल और हर पीढ़ी के चहेते लेखकों में से रहे हैं।
यही कारण था कि मॉस्को की अपनी संक्षिप्त यात्रा में भी जब मास्को के हमारे मित्र प्रगति और हिमांशु टिपनिस ने ये ऑफर दिया कि वे हमें मॉस्को स्थित टॉलस्टाय एस्टेट म्यूजियम ले जाना चाहते हैं तो उन्हें एक झटके में हां कह दिया। इस जगह जाने का उत्साह इतना था कि पहली रात दिल्ली एयरपोर्ट पर गुजारने और फिर सात घंटे की हवाई यात्रा करने के बावजूद उत्साह बना रहा। इतना ही नहीं होटल में साढ़े ग्यारह बजे सामन रख कर बारह के पहले म्यूजियम जाने के लिए कार में बैठने की ऊर्जा भी बनी रही।
मॉस्को के टॉलस्टागो इलाके में एक बहुत सुरम्य परिसर है जहां लकड़ी के खूबसूरत भवन में टॉलस्टाय 1882 से 1901 तक रहे ।जब उन्होंने यह परिसर अपने रहने के लिए चुना तब ये एकांत में था और सुरम्य भी। बाद में बढ़ती आबादी और आवश्यकताओं के कारण इस जगह भी काफी भवन , आवास और इमारतें हैं। यह म्यूजियम सरकार द्वारा संचालित है और इसका नियमित रख रखाव सरकार एक समिति की मदद से करती है।वैसे टॉलस्टाय के तीन म्यूजियम है जो उन जगहों पर है जहां टॉलस्टाय रहे। लेकिन ये जगह और म्यूजियम इसलिए विशेष है क्योंकि यहां आकर टॉलस्टाय के जीवन में व्यापक परिवर्तन आ गया। वे मानवतावादी बने, वे शाकाहारी बने और उन्होंने अपने जीवन मूल्यों में करुणा और उदारता का समावेश किया।
टॉलस्टाय ने यहां अपने जीवन को चार कार्यों में बांटा और उसके अनुसार ही अपना जीवन संचालित किया। पहला हिस्सा शारीरिक श्रम।वे सुबह उठ कर भरपूर मेहनत करते थे। बगीचे में काम करना, डम्बल के साथ व्यायाम करना और साइकिल चलाना। मजे की बात ये है कि उन्होंने 67 की आयु में साइकिल चलाना सीखी। दूसरा हिस्सा मानसिक श्रम का था और इस हिस्से में वे लेखन या पठन पाठन करते थे। उनकी स्टडी रूम इसलिए घर की दूसरी मंजिल पर सबसे आखिर में थी ताकि उन्हें कोई डिस्टर्ब न करे। तीसरा हिस्सा होता था शिल्पकारी या कारीगरी का। टॉलस्टाय ने अलग अलग हुनर सीखे और वे उसके प्रयोग किया करते थे। 72 वर्ष की आयु में उन्होंने चमड़े के जूते बनाना सीखे और इतना ही नहीं अपने मित्रो को बना कर भेंट भी किए। चौथा हिस्सा होता था लोगों से मेल मुलाकात करने का। ये हिस्सा स्वयं उन्हें भी बहुत पसंद नहीं था और वे इससे जल्दी से जल्दी छुटकारा पाना चाहते।
टॉलस्टाय ने सत्य के मार्ग पर चलने का निश्चय लेते हुए इसे जीवन जीने का मार्ग बनाया। वे मानते थे कि सत्य ही ईश्वर है। गांधी जी ने भी यही मार्ग अपनाया था सत्याग्रह का। उनके बाद के लेखन में वे बातें झलकती भी है।
उनके आठ बच्चे थे और उनकी पत्नी सोफिया का काम होता था बच्चों को देखना और उनकी अभिरुचि का विकास करना। वैसे सोफिया टॉलस्टाय के रफ में लिखे को फेयर करने का काम भी करती थी। इसके अलावा वे बहुत अच्छी कढ़ाई और बुनाई भी करती थी। इसके नमूने आपको यहां देखने मिल जाएंगे। साथ ही सोफिया घर का प्रबंधन भी देखती थी। एक डाइनिंग टेबल जिसे बेहद करीने से सजा कर रखा है में हेड ऑफ द टेबल पर सोफिया की ही जगह थी। हालांकि कहा जाता है कि उन पति पत्नी के आपसे संबंध बहुत अच्छे नहीं थे फिर भी वे एक दूसरे का काम किया करते थे।
टॉलस्टाय के बच्चों में ऐसा कहा जाता की उनकी बेटी अलेक्जेंड्रिया में टॉलस्टाय के गुण उतरे थे। वह अपने पिता का ख्याल भी खूब रखती थी। लेकिन उसकी मृत्यु कम आयु में ही हो गई। इस भवन में आपको बच्चों के अलग अलग कमरे और उनमें बच्चों के शौक और पढ़ने की सामग्री देखने को मिलेगी।
घर में आलीशान बैठक और लिविंग हॉल भी है जहां बड़े बड़े साहित्यकारों और कलाकारों की महफिलें जमा करती थी। कुछ पुराने चित्र आज भी उस परिवार की उत्सवधर्मिता की गवाही देते हैं।
इस म्यूजियम की विशेषता यह है कि इसमें पुरानी चीजों को ठीक करके और उन्हें सुरुचिपूर्ण ढंग से रखा गया है। एक एक कक्ष ऐसा लगता है मानो कक्ष के स्वामी की प्रतीक्षा कर रहा हो। इसलिए आपको अंदर चलते हुए लगता है कि अभी किसी दरवाजे से सोफिया दाखिल होंगी । सौभाग्य से हमें टूर कराने वाले गाइड भी एक युवा उत्साही रिसर्च स्कॉलर थे जिन्होंने वे सब बारीक बातें भी बताई को टूर की सामान्य विवरण में नहीं थी। एक घंटे चलने वाला तौर पौने दो घंटे चला। माहौल इतना टॉलस्टाय मय हो गया था कि उनकी स्टडी के पास जाते तक हम सब एकदम खामोश हो गए इस प्रयास में कि कही हमारी उपस्थिति टॉलस्टाय जी के लेखन में व्यवधान उत्पन्न न कर दे। प्रगति जी और उनके साथ आई उनकी मित्र अल्पना जी और सरोज जी उत्साह से गाइड से रूसी भाषा में प्रश्न पूछे और उसके उत्तर का अनुवाद मुझे हिंदी में बताया।
म्यूजियम के परिसर में सुंदर सा बगीचा भी है जिसमें चहल कदमी करना एक अलग आनंददाई अनुभव है। वहां चलते हुए बस मन में एक ही विचार था जो इस आनंद में खलल डाल रहा था और वो ये कि हमारे देश में हमने किन किन लेखकों ,साहित्यकारों की धरोहर को संजो कर इस तरह का म्यूजियम बनाया है।