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कौन जात हो भाई – बच्चा लाल “उन्मेष”

{कविता}

by satat chhattisgarh
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who are you brother

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कौन जात हो भाई?

“दलित हैं साब!”

नहीं मतलब किसमें आते हो?

आपकी गाली में आते हैं

गंदी नाली में आते हैं

और अलग की हुई थाली में आते हैं साब!

मुझे लगा हिंदू में आते हो!

आता हूँ साब! पर आपके चुनाव में।

क्या खाते हो भाई?

“जो एक दलित खाता है साब!”

नहीं मतलब क्या-क्या खाते हो?

आपसे मार खाता हूँ

क़र्ज़ का भार खाता हूँ

और तंगी में नून तो कभी अचार खाता हूँ साब!

नहीं मुझे लगा कि मुर्ग़ा खाते हो!

खाता हूँ साब! पर आपके चुनाव में।

क्या पीते हो भाई?

“जो एक दलित पीता है साब!

नहीं मतलब क्या-क्या पीते हो?

छुआ-छूत का ग़म

टूटे अरमानों का दम

और नंगी आँखों से देखा गया सारा भरम साब!

मुझे लगा शराब पीते हो!

पीता हूँ साब! पर आपके चुनाव में।

क्या मिला है भाई

“जो दलितों को मिलता है साब!

नहीं मतलब क्या-क्या मिला है?

ज़िल्लत भरी ज़िंदगी

आपकी छोड़ी हुई गंदगी

और तिस पर भी आप जैसे परजीवियों की बंदगी साब!

मुझे लगा वादे मिले हैं!

मिलते हैं साब! पर आपके चुनाव में।

क्या किया है भाई?

“जो दलित करता है साब!

नहीं मतलब क्या-क्या किया है?

सौ दिन तालाब में काम किया

पसीने से तर सुबह को शाम किया

और आते जाते ठाकुरों को सलाम किया साब!

मुझे लगा कोई बड़ा काम किया!

किया है साब! आपके चुनाव का प्रचार!”

https://www.facebook.com/bachcha.lal.507/   

से  ली गई

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