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Bangladesh : चुप क्यों हो बिरादर?

अजय तिवारी

by satat chhattisgarh
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Bangladesh

Bangladesh : बंग्लादेश की घटनाओं से हम भारतवासी बहुत चिंतित हैं। लगता है कि यहाँ के अल्पसंख्यक समुदाय के महत्वपूर्ण लोग और विचारशील बुद्धिजीवी इस राष्ट्रीय चिंता से अलग हैं। ज्यों-ज्यों बंग्लादेश में परिवर्तन अपनी मंज़िल पर पहुँचा त्यों-त्यों साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़कर अल्पसंख्यकों पर आक्रमण का रूप दिया जाने लगा। हम अगर भारत में अल्पसंख्यकों के हित की रक्षा के लिए खड़े होते हैं तो बंग्लादेश में हमारा रुख बदल नहीं जाएगा। वहाँ भी हम अल्पसंख्यकों के हित के लिए खड़े होंगे।

हमारे मुस्लिम भाई विचार करें कि क्या उनमें से ज़िम्मेदार और महत्वपूर्ण लोग बंग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर नृशंस हमलों के खिलाफ कुछ भी बोल रहे हैं? मैं इंतज़ार कर रहा था कि शायद कुछ खुले दिल-दिमाग के मुसलमानों की ओर से सोशल मीडिया पर कुछ आये, किसी अखबार में लेख दिखाई दे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। खुलकर बोलने या निंदा करने की बात तो जाने ही दीजिए, सहानुभूति का स्वर भी नहीं मिला।

तस्लीमा नसरीन ने ‘लज्जा’ में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बंग्लादेश में हिंदुओं पर क्रूरतापूर्ण हमलों का चित्र खींचा था और उसके प्रति घृणा व्यक्त की थी। तस्लीमा नसरीन के खिलाफ मौत का फतवा जारी करने में मुल्लाओं ने पल भर की देर नही की थी।

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मुझे पता है कि बहुत से समझदार मुस्लिम तस्लीमा नसरीन के पक्ष में थे। आपसी बातचीत में खुलकर विचार व्यक्त होते थे लेकिन सार्वजनिक रूप में उन्हीं बातों को कहना हमारे मित्रों के लिए कठिन था। लेकिन आज उन्हीं मुस्लिम साथियों मेँ से कुछ लोग सार्वजनिक रूप से बांग्लादेश के मुद्दे पर अल्पसंख्यकों के पक्ष में बोल नहीं पा रहे हैं।

यह बात मैं विश्वास के साथ कह रहा हूँ क्योंकि फोन पर निजी बातचीत में कुछ मुस्लिम मित्रों ने इस बात पर अफसोस जताया कि छात्रों और नागरिकों के उचित आक्रोश से उपजी क्रांति को बांग्लादेश में भीतर और बाहर के निहित स्वार्थों ने मिलकर इस्लामी रूप देने में पूरी ताकत झोंक दी है और परिवर्तन को अल्पसंख्यकों पर हमले की कार्रवाई में बदल दिया है।

ऐसे एक मित्र ने लंबी बातचीत में कहा कि ये मुसलमान ज़्यादातर इतने जाहिल हैं कि बड़े भाई का कुर्ता और छोटे भाई का पजामा पहनकर नारा लगाते सड़क पर उतर आते हैं और मुल्लाओं के साथ मिलकर आवाज़ उठाने लगते हैं। पढ़ने-लिखने से मतलब नहीं है लेकिन जहालत को ही जानकारी मानकर पागलों जैसी बात करते हैं।

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इस मित्र का नाम सार्वजनिक नही कर सकता क्योंकि उसके मुस्लिम आस पड़ोस के जाहिल मुसलमान ही उसपर हमला कर देंगे।

ज़ाहिर है कि एक छोटा हो सही लेकिन सभ्य-सुसंस्कृत तबका मौजूद है जो मुस्लिम कट्टरपन का विरोधी है। यह हमारे सोचने का विषय है कि हमारे लोकतंत्र ने यह माहौल कैसे पैदा हो जाने दिया कि मुसलमानों के कट्टरपंथी तो खुलकर बोल सकते हैं लेकिन उदारचेता मुसलमान अपनी बात नहीं कर सकते? उन्हें अपने ही समुदाय के कट्टरपंथियों से खतरा है!

इसमें शक़ नहीं कि आज मुस्लिम समुदाय का बड़ा हिस्सा या तो स्वयं साम्प्रदायिकता के असर मेँ है या कट्टरपंथियों के दबाव में है। जैसे हिंदुओ के उग्रवादी तत्व अक्सर यह कहते पाए जाते हैं कि सेकुलर हिंदुओ को पहले मारो, वैसे ही मुसलमानों में उग्रवादी तत्व सेकुलर मुसलमानों को दुश्मन मानते हैं। इस बात की सम्भावना लगभग नहीं बची है कि दोनों के सेकुलर लोग मिलकर सार्वजनिक रूप में विचार व्यक्त करें और व्यापक सामाजिक जीवन को उदारता के संस्कारों के अनुकूल ढालें।

किसी भी प्रकार हो, खतरा मोल लेकर भी उदारपंथी मुसलमानों को बंगलादेश के अल्पसंख्यकों के पक्ष में बोलना चाहिए। वरना कल को जब भारत के बहुसंख्यक कट्टरपंथी यहाँ के मुसलमानों के खिलाफ आक्रामक होंगे तब इस बात का तर्क नहीं बचेगा कि अल्पसंख्यकों के जीवन और हितों की रक्षा के लिए बहुसंख्यक हिंदुओं के सेकुलर लोग मैदान में उतरें। वे भी डर सकते हैं।

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हम इंतज़ार कर रहे हैं कि समझदार मुस्लिम साथी साहस बटोर कर, एकजुट होकर बंग्लादेश में अल्पसंख्यकों यानी हिंदुओ के लिए बोलेंगे। भारत की सरकार ने गलत रुख अपनाया है–उसने बंग्लादेश में “हिंदुओ की रक्षा” के प्रति चिंता जतायी है और हस्तक्षेप की बात भी सुनाई दे रही है। अगर पूर्वी पाकिस्तान से अलग बंगलादेश बनाने के लिए भारत की सेना हस्तक्षेप कर सकती थी तो आज “हिंदुओ” की रक्षा के लिए हस्तक्षेप से कोई रोक नहीं सकता। उसका रुख़ गलत है क्योंकि भारत को बंग्लादेश में अल्पसंख्यकों की रक्षा का सवाल उठाना चाहिए था।

हमारा सिद्धान्तनिष्ठ स्टैंड है कि हम दुनिया के किसी भी देश में रहने वाले अल्पसंख्यकों के जीवन और अधिकार के लिए खड़े होंगे। यही हम भारत सरकार से उम्मीद करते हैं और भारत के मुसलमानों में जो समझदार लोग हैं, उनसे भी।

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