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जंगल है हमारी पहली पाठशाला

पूनम वासम

by satat chhattisgarh
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poonam vasam

माँ नहीं सिखाती उँगली पकड़कर चलना
सुलाती नहीं गोद में उठाकर लोरिया गाकर

चार माह के बाद भी दाल का पानी सेरेलेक्स ज़रूरी नहीं होता हमारे लिए

जॉन्सन बेबी तेल की मालिश और साबुन के बिना भी
हड्डियाँ मज़बूत होती हैं हमारी

हम नहीं सीखते माँ की पाठशाला में ऐसा कुछ भी
जो साबित कर सके कि हम गुज़र रहे हैं
बेहतर इंसान बनने की प्रक्रिया से!

स्कूल भी नहीं सिखा पाता हमें ‘अ से अनार’ या ‘आ से आम’ के अलावा कोई दूसरा सबक़

ऐसा नहीं है कि हम में सीखने की ललक नहीं, या हमें सीखना अच्छा नहीं लगता

हम सीखते हैं
हमारी पाठशाला में सब कुछ प्रायोगिक रूप में

‘नंबी जलप्रपात’ की सबसे ऊँची चोटी से गिरते तेज़ पानी की धार
हमें सिखाती है संगीत की महीन धुन

‘चापड़ा’ की चटपटी चटनी सिखाती है
विज्ञान के किसी अम्ल की परिभाषा!

अबूझमाड़ के जंगल सब कुछ खोकर भी
दे देते हैं अपनी जड़ों से जुड़े रहने के ‘सुख का गुण-मंत्र’

तीर के आख़िरी छोर पर लगे ख़ून के कुछ धब्बे सुनाते हैं
‘ताड़-झोंकनी’ के दर्दनाक क़िस्से!

बैलाडीला के पहाड़ सँभाले हुए हैं
अपनी हथेलियों पर आदिम हो चुके संस्कारों की एक पोटली

धरोहर के नाम पर पुचकारना, सहेजना, सँभालना और तनकर खड़े रहना
सीखते हैं हम बस्तर की इन ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से!

कुटुंबसर की गुफा में,
हज़ारों साल से छुपकर बैठी अंधी मछलियों को देखकर
जान पाएँ हम गोंड आदिवासी अपने होने का गुण-रहस्य!

माँ जानती थीं सब कुछ
किसी इतिहासवेत्ता की तरह

शायद इसलिए
माँ हो ही नहीं सकती थीं हमारी पहली पाठशाला
जंगल के होते हुए!

जंगल समझता है हमारी जंगली भाषा माँ की तरह!

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