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Poem : मोटी चमड़ी वाले पुरुष

मेहजबीं

by satat chhattisgarh
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मोटी चमड़ी वाले पुरुष
मोटे बालों वाले पुरुष
मूंछों वाले पुरुष
दाड़ी वाले पुरुष
पेश करते हैं अपने आप को
दिनभर थकीमांदी स्त्री के सामने
बदसूरत वस्त्रों में
उन्होंने कभी नहीं सूंघी अपनी बगलों की बदबू

पुरुष सुंदर वस्त्र पहनकर बाहर जाते हैं
उनकी कर्कश ध्वनि गूंजती है ख़ला में
वो फुल वोल्यूम में सुनते हैं संगीत
सरेआम बाज़ार में छेड़ते हैं लड़कियों को
तृतीय श्रेणी की फिल्म देखते हैं रेल में
उनके लिए किसी किस्म का पर्दा बना ही नहीं

चमकदार त्वचा वाली स्त्री
काले घने सिल्की बालों वाली महिला
पेश करती है अपने आप को
दिनभर थके मांदे पुरुष के सामने
सुंदर वस्त्रों में
उन्हें नहा-धोकर इत्र लगाकर रखना है

स्त्री सुंदर वस्त्र रसोई घर में पहनती है
उनकी सिसकी उड़ती है ख़ला में
उनको अपने कमरे में ही सीमित रखनी है
अपनी इच्छा
अपनी आवाज़
वो डरती हैं बाज़ार जाने से
वो सिमटकर पर्दे से बैठती हैं रेल में
उनको अपना जिस्म छुपाना है
अपनी आवाज़ छुपानी है
किस्म किस्म के पर्दे बने हैं स्त्री के वास्ते
औरत की आवाज़ का भी पर्दा है
औरत की ख़ाल का भी पर्दा है
औरत के लिबास का भी पर्दा है

 

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