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मिट्टी और मनुष्य- कविता

by satat chhattisgarh
1 comment
until the soil is established in its original form he has no religion or caste he has no community He is not a man, not a god Human values are in the soil

मिट्टी जबतक स्थापित है
अपने मूल रूप में
उसका कोई धर्म और जाति नहीं
उसकी कोई बिरादरी नहीं
वो मनुष्य नहीं भगवान नहीं
मिट्टी में हैं मानवीय मूल्य

चिकनी मिट्टी की अपनी उपयोगिता है
पथरीली मिट्टी की अपनी
काली मिट्टी भी बेकार नहीं
उसमें भी बीज अंकुरित होते हैं
मिट्टी की खुशबू
आदमी को भर देती है ताजगी से
मिट्टी फूलदान को सजा देती है फूलों से

शाहरुख खान,उनकी बहन और औरतें

मिट्टी ने बचाये रखा है प्रकृति को
मिट्टी ने बसाये रखा मनुष्य को
उसका पेट भरा कभी उसका तन ढका
कभी उसपर साया किया
जबतक मिट्टी अपने अस्तित्व में बाक़ी रहती है
मनुष्य को अकेला नहीं छोड़ती

मिट्टी अपने मूल रूप से बदलकर
मनुष्य के रुप में स्थापित होती है
उसमें मनुष्य का बीज अंकुरित होता है
अपने अस्तित्व को खोकर
मिट्टी आदमी बनती है
उसकी पहचान जाति धर्म से होती है
मिट्टी आदमी औरत बनती है
मिट्टी भगवान की मूर्ति बनती है

आदमी उजाड़ देता है मार देता है आदमी को
बाक़ी आदमी चुपचाप तमाशा देखते हैं
मूर्ति भी ख़ामोश रहती है
उसके सामने आदमी की हत्या होती है
उसके सामने मूर्ति तोड़ी जाती है

आदमी का जी भर जाता है पुराने आदमी से
वो नया आदमी घर ले आता है
आदमी का जी भर जाता है पुरानी मूर्ति से
वो नया भगवान घर ले आता है
आदमी की नियत चारों तरफ
घुटन और शैलाबी पैदा करती है
आदमी ने हमेशा मनुष्यता की हत्या की है
प्रकृति का विनाश किया है

मिट्टी जबतक स्थापित है
अपने मूल रूप में
उसका कोई धर्म और जाति नहीं
उसकी कोई बिरादरी नहीं
वो मनुष्य नहीं भगवान नहीं
मिट्टी में हैं मानवीय मूल्य !!

 मेहजबीं

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