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उसने ऐसा क्यों नहीं लिखा (पूनम वासम)

पूनम वासम

by satat chhattisgarh
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Why didn't he write that

नीली वाली स्कूल ड्रेस के अलावा किसी और रंग के कपड़े नहीं है उसके पास

किताबों के नाम पर स्कूल की लाइब्रेरी भरी पड़ी है
उसके पास कक्षा चौथी की हिंदी और गोंडी द्विभाषीय किताब के अलावा कोई और किताब नहीं

महीनों नहीं पलटती वह किताब के पन्ने

उसे जाना होता है, खेत की मेड बाँधने, बकरी, गाय को हरी घास खिलाने

नहीं उसने नहीं सुनी है गुरु शिष्य वाली कोई भावनात्मक पौराणिक कथा

दरअसल वह उम्र से बड़ी दिखने लगी है

किसी भी घटना के लिए उसे अब जिम्मेदार ठहराया जा सकता है

(२)

तेंदूपत्ता का सीजन त्यौहारों का सीजन है
लूँगी की गांठ लगाते हुए उसने पूछा था
तुम्हारे घर पर कौन -कौन हैं

माँ छोड़ कर चली गई, बाबा है, दारू पीता है
भाई शहर में सवारी गाड़ी चलाता है
बंडल बांधती झुकी हुई लड़की
सबको अच्छी लगती है

दो रुपये की जगह चार रुपये पकड़ाता ठेकेदार
लड़की का दर्द समझ चुका था

ऋतुओं पर निर्भर उनके जीवन चक्र की कहानियों में मिथक कथाओं की भरमार है

लड़की नहीं जानती अपनी पुरखिन
‘राजकुमारी चमेली देवी’ का आत्मभिमान का इतिहास

दरसअल वह जिम्मेदारियों को समझने लगी है
भारी बोझ के लिए उसके कंधे अब तैयार हैं

(३)

उसके गांव में बनने लगी है पक्की सड़कें
उसके पास नया कोई दुप्पट्टा नहीं

महुआ से भरी टोकरी उठाने तक तो ठीक है
पर गिट्टी से भरी तगाड़ी उठाते वक्त सरक जाता है
छोटा वाला नीला स्कर्ट नीचे

बड़ी गाड़ी के ड्राइवर ने हँसते हुए कमर पर
हाथ रखकर पूछा
लाल रंग की स्कर्ट तुझे पसन्द है क्या

उसके पास उदाहरण के लिए शीरीं-फरहाद की कहानियां नहीं पहुँचतीं
झिटकू-मिटकी की प्रेम कुर्बानियों में ढूंढती रही वह
अमर होने का रास्ता

लाल रंग के धोखे में वह लुटने को तैयार थी

(४)

कैंप के अलावा और क्या बन सकता है तुम्हारे गाँव में
जंगल से बास्ता तोड़कर लौटती फूलो से वर्दी वाले ने पूछा

वह सकपका गई
पसीने से भीग चुकी उसकी देह कांपने लगी
उसने अपना थैला वापिस लेना चाहा
हाथ कसते हुए वह मुस्कुराया

हमनें बास्ता की सब्जी नहीं चखी है कभी
चूल्हे पर पकी हुई सब्जी का स्वाद अलग होता है

उसने नहीं देखा किसी वर्दीधारी को बन्दूक चलाते
शहर की ओर

उसके घर की कच्ची दीवारें ‘मुग्गु’ से नहीं
बैनर, पोस्टर, नारों से सजी हुईं हैं

पांच रुपये की लाई, दो रुपये का चना, दस रुपये का सोयाबीन बड़ी, बहुत हुआ तो दो, चार रुपये का नमक, आलू, प्याज, तेल, बस इतना सा है उसका जीवन

साँस के बदले देह का सौदा बुरा नहीं

(५)

वह किसी बड़े शहर के किसी बड़े प्रकाशक का कोई बड़ा लेखक था
आदिवासी औरतों की सामाजिक स्थिति पर कोई लेख लिखने जंगल आया था

इससे ज्यादा क्या हो सकती है
एक जंगली औरत की खुशियां
कविताएँ लिखी थी उसने उनकी सुंदरता
उनकी उन्मुक्तता पर

उनके नृत्य, उनके लयात्मकत गीतों पर

एक दफा कोशिश की थी उसने
अंदर की दुनिया पहचानने की
देह के कपड़े उतार नंगी खड़ी हो गई सारी की सारी औरतें
दहाड़ ऐसी की घबराकर कलम छूट जाये हाथों से

पुरुषों से ज्यादा खूंखार होती हैं जंगली औरतें
उसने लिखा

ऐसा क्यों ?
उसने नहीं लिखा।

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